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________________ सं० १३१३ फाल्गुन सुदि चतुर्थी को जालौर में स्वर्णगिरि के ऊपर वाले मन्दिर में वाहित्रिक उद्धरण नाम के श्रावक से कारित श्री शान्तिनाथ भगवान् की मूर्ति की स्थापना की। चैत्र सुदि चतुर्दशी को कनककीर्ति, त्रिदशकीर्ति, विबुधराज, राजशेखर, गुणशेखर तथा जयलक्ष्मी, कल्याणनिधि, प्रमोदलक्ष्म और गच्छवृद्धि की दीक्षा हुई। इसके बाद स्वर्णगिरि शिखर पट के दूसरे मन्दिर में पद्रू और मूलिग नाम के श्रावकों ने बहुत सा धन खर्च करके वैशाख वदि १ को श्री अजितनाथ प्रतिमा की स्थापना करवायी। पालनपुर में आषाढ सुदि १० के दिन भावनातिलक और भरतकीर्ति को दीक्षा की गई और उसी दिन आचार्यश्री की आज्ञा से भीमपल्ली में श्री महावीर स्वामी की प्रतिमा की स्थापना हुई। __ सं० १३१४ माघ सुदि १३ को इस नगरी के किले पर बनवाये हुए मुख्य मन्दिर पर ध्वजा चढ़ाई गई। यह कार्य श्री उदयसिंह राजा की देख-रेख में निर्विघ्नतापूर्वक सम्पन्न हुआ था। तदनन्तर पालनपुर में अग्रिम वर्ष की आषाढ़ सुदि १० को सकलहित और राजदर्शन को एवं बुद्धिसमृद्धि, ऋद्धिसुन्दरी, रत्नवृष्टि इन साध्वियों को बड़े ही ठाठबाट से दीक्षा दी गई। ___ सं० १३१६ माघ सुदि १४ के दिन जालौर में धर्मसुन्दरी गणिनी को प्रवर्तिनी पद तथा माघ सुदि ३ को पूर्णशिखर और कनककलश को प्रवज्या दी गई। माघ सुदि ३ के दिन महाराज श्री चाचिगदेव के राजत्व में पद्रू और मूलिग नाम के श्रावकों ने स्वर्णगिरि में श्री शान्तिनाथ स्वामी के मन्दिर पर स्वर्णमय कलश और ध्वजदण्ड का आरोपण कराया। इसी प्रकार श्री सोमचन्द्र नाम के मंत्री ने बीजापुर में आषाढ़ सुदि ११ के दिन श्री वासुपूज्य भगवान् के मन्दिर पर स्वर्णकलश और स्वर्ण के बनाये हुए ध्वज दण्ड चढाये। सं० १३१७ माघ सुदि १२ को अधिक धन व्यय के साथ श्री लक्ष्मीतिलक गणि को उपाध्याय पद प्रदान किया तथा पद्माकर नाम के व्यक्ति को दीक्षा दी गई। माघ सुदि १४ के दिन आचार्यश्री की आज्ञानुसार श्री जावालीपुर के शोभावर्द्धक श्री महावीर जिनेन्द्र के मन्दिर में स्थापित चौबीस देवकुलिकाओं पर पंचायत की तरफ से स्वर्णकलश और सोने के ध्वजदण्ड चढ़ाये गए। फाल्गुन सुदि १२ को श्री शान्तनपुर में अजितनाथ स्वामी के मन्दिर में ध्वजदण्ड की प्रतिष्ठा और ध्वजारोहण किया गया। यह प्रतिष्ठा सम्बन्धी कार्य वाचनाचार्य पूर्णकलश गणि ने करवाया था। इसी प्रकार भीमपल्ली में श्री मांडलिक राजा के राजत्वकाल में वैशाख सुदि १० सोमवार के दिन राज्य के प्रधान दण्डनायक श्री मीलगण? (सीलण) की सन्निधि में सेठ श्री खीमड़ के पुत्र सेठ जगद्धर और उसके पुत्ररत्न सेठ श्री भुवन ने अपने कुटुम्ब व संघ समुदाय के साथ बड़ा धन खर्च कर श्री वर्द्धमान स्वामी के "मन्दिर-तिलक" नामक मन्दिर पर स्वर्णदण्ड और स्वर्णकलश चढ़वाये और उनकी प्रतिष्ठा भी उसी दिन करवायी। उस समय वहाँ पर श्री महावीर स्वामी के केवलज्ञान महोत्सव का दिन होने से पालनपुर आदि अनेक नगरों के श्रावकों के आने से मेला लग गया था। इसके अतिरिक्त वहाँ पर और भी बहुत सी जिन प्रतिमा व देवी-देवताओं की प्रतिष्ठा करवाई गयी थी। जैसे कि सेठ हरिपाल और उसके भाई कुमारपाल ने संसार की तमाम सर्वश्रेष्ठ विद्याओं की चक्रवर्ती, चन्द्रमा के समान संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास (१२९) _Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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