________________
(वैसे तो मणिधारी श्री जिनचन्द्रसूरि, श्री जिनपतिसूरि और श्री जिनेश्वरसूरि जी महाराज के जीवन चरित्र में चमत्कार पैदा करने वाली अनेक बातें हैं, परन्तु दिल्ली निवासी साहुली सेठ के पुत्र श्री हेमचन्द्र सेठ की प्रार्थना से श्री जिनपालोपाध्याय ने चतुर्विध संघ के आमोद के लिए उनमें से मोटीमोटी और सरल बातें उपर्युक्त रीति से लिखी हैं।) वे स्वयं लिखते हैं :
लोकभाषानुसारिण्यः सुखबोधा भवत्यतः। इत्येकवचनस्थाने क्वापि (च) बहूक्तिरपि॥ बालावबोधनायैव सन्ध्यभावः क्वचित्कृतः। इति शुद्धिकृच्चेतोभिः सद्धिर्जेयं स्वचेतसि॥ बुद्धये शुद्धये ज्ञानवृद्धयै जनसमृद्धये ।
चतुर्विधस्य संघस्य भण्यमाना भवन्त्वतः॥ (हमने इन आचार्यों के जीवन की बातें संस्कृत में लोकभाषा के मुहावरे के अनुसार लिखी हैं। इनमें काठिन्य नाममात्र की भी नहीं है। हर एक आदमी सुगमता से जान सकें, इसका ध्यान रखा गया है। इसीलिए कहीं-कहीं आचार्यादि के लिए एकवचन के स्थान में बहुवचन भी दे दिया गया है। साधारण संस्कृतज्ञों की जानकारी के लिए कहीं-कहीं सन्धि का अभाव भी किया गया है। शुद्धाशुद्ध का विचार करने वाले विद्वान् लोग हमारे इस अभिप्राय को जान लें। हमारी कही हुई प्रातःस्मरणीय आचार्यों के जीवन-चरित्र सम्बन्धी ये बातें चतुर्विध संघ के लिए बुद्धि, शुद्धि, ज्ञानवृद्धि और जन-समृद्धि को देने वाली हों।)
[पाठक वृन्द! ऊपर के लेख से विदित होता है कि श्री जिनपालोपाध्याय जी ने श्री जिनेश्वरसूरि जी महाराज का जीवन-चरित्र यहीं तक लिखा है। उनका आगे का जीवन-चरित्र किसी अन्य विद्वान् मुनि का लिखा हुआ है।]
६८. इसके बाद श्री जिनेश्वरसूरि जी ने श्रीमाल नगर में सं० १३०६ जेष्ठ सुदि १३ के दिन कुन्थुनाथ और अरनाथ भगवान् की प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा की और सेठ धीधाक की प्रार्थना स्वीकार करके दूसरी बार ध्वजारोपण किया। ___ सं० १३०९ में मार्गशीर्ष शुक्ला १२ को समाधिशेखर, गुणशेखर, देवशेखर, साधुभक्त, वीरवल्लभ मुनि तथा मुक्तिसुन्दरी साध्वी को दीक्षा दी और उसी वर्ष माघ सुदि १० को शान्तिनाथ, अजितनाथ, धर्मनाथ, वासुपूज्य, मुनिसुव्रत, सीमंधरस्वामी, पद्मनाभ आदि तीर्थंकरों की प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा सेठ विमलचन्द्र, सा० हीरा आदि धनी-मानी श्रावक समुदाय ने पूज्यश्री से करवाई। यहाँ पर यह बतला देना भी अनुचित न होगा कि किस-किस श्रावक-समुदाय के धनव्यय से किस-किस तीर्थंकर भगवान की प्रतिमा स्थापित की गई थी। सेठ विमलचन्द्र ने नगर कोट में जो स्थापित है, उन श्री शान्तिनाथ जी की प्रतिष्ठा पर्याप्त धन व्यय करके करवाई। अजितनाथ भगवान् की प्रतिष्ठा बल० साधारण श्रावक
संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास
(१२७)
___Jain Education International 2010_04
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org