SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सं० १२८१ में पूज्य श्री जिनेश्वरसूरि ने ठा० अश्वराज और सेठ राल्हा की सहायता से उज्जयन्त, शत्रुञ्जय और स्तंभनक इन प्रधान तीर्थों की यात्रा की थी। स्तम्भनक (खम्भात) में वादी यमदण्ड नाम के दिगम्बर पण्डित से पूज्यश्री का मिलाप होकर विद्वत्तापूर्ण वार्तालाप हुआ था। वहीं पर प्रसिद्ध महामंत्री श्री वस्तुपाल अपने परिवार सहित नगर प्रवेश के समय पूज्यश्री के सम्मुख आये थे। इससे उस समय जिन शासन की अच्छी प्रभावना हुई थी। सं० १२९१ वैशाख सुदि दशमी के दिन जाबालीपुर में आकर यतिकलश, क्षमाचन्द्र, शीलरत्न, धर्मरन, चारित्ररत्न, मेघकुमार गणि, अभयतिलक गणि, श्रीकुमार तथा शीलसुन्दरी गणिनी, चन्दनसुन्दरी इन साधु-साध्वियों को विधि-विधान से दीक्षा दी। ज्येष्ठ वदि द्वितीया रविवार के दिन शुभ मूहूर्त में मूल नक्षत्र पर श्री विजयदेवसूरि को आचार्य पद से विभूषित किया। सं० १२९४ में संघहित मुनि को उपाध्याय पद दिया। सं० १२९६ फाल्गुन वदि पंचमी को पालनपुर में प्रमोदमूर्ति, प्रबोधमूर्ति, देवमूर्ति गणि इन तीनों की दीक्षा विपुल धन व्यय के साथ की गई। ज्येष्ठ सुदि १० को उसी नगर में श्री शान्तिनाथ भगवान् की प्रतिष्ठा करवाई, यही मूर्ति आजकल पाटण में विद्यमान है। सं० १२९७ चैत्र सुदि १४ के दिवस देवतिलक और धर्मतिलक को पालनपुर में दीक्षा दी गई। सं० १२९८ वैशाख की एकादशी को जावालीपुर में समुदाय सहित महं० कुलधर ने (जिन चैत्य में) सूत्रधार गुणचन्द्र से बनवाये हुए सुवर्णमय दण्ड पर ध्वजा का आरोपण किया। सं० १२९९ के प्रथम आश्विन माह की द्वितीया के दिन प्रगाढ़ वैराग्य के वशीभूत होकर महामंत्री कुलधर ने दीक्षा धारण की। इनकी दीक्षा के समय जो महोत्सव किया गया वह राजा गण और नागरिक लोगों के आश्चर्य समुद्र को बढ़ाने में पूर्णिमा के चाँद के समान हुआ अर्थात् इतने बड़े वैभवशाली राजनीति पटु मंत्री को साधु होते हुए देखकर उन लोगों के आश्चर्य की कोई सीमा नहीं रही। दीक्षा के बाद मंत्री जी का नाम कुलतिलक मुनि रखा गया। ___सं० १३०४ वैशाख सुदि १४ के दिन जिनेश्वरसूरि जी ने विजयवर्द्धन गणि को आचार्य पद दिया और इनका नाम बदल कर जिनरत्नाचार्य रखा। त्रिलोकहित, जीवहित, धर्माकर, हर्षदत्त, संघप्रमोद, विवेकसमुद्र, देवगुरुभक्त, चारित्रगिरि, सर्वज्ञभक्त और त्रिलोकानन्द को संयम प्रदान किया। सं० १३०५ में आषाढ़ सुदि १० को पालनपुर में श्री महावीर स्वामी, श्री ऋषभदेव स्वामी', श्री नेमिनाथ स्वामी, श्री पार्श्वनाथ स्वामी की प्रतिमाओं की तथा नन्दीश्वर तीर्थ के भावयुक्त पट्ट की प्रतिष्ठा की। __इति श्रीजिनचन्द्रसूरि-श्रीजिनपतिसूरि-श्रीजिनेश्वरसूरिसत्कसजनमनश्चमत्कारिप्रभावनावार्तानामपरिमितत्वे अपि तन्मध्यवर्तिन्यः कतिचित् स्थूलाः स्थूला वार्ताः श्रीचतुर्विधसंघप्रमोदार्थम्। ढिल्ली वास्तव्यसाधु-साहुलिसुत सा० हेमाभ्यर्थनया। जिनपालोपाध्यायरित्थं ग्रथिताः स्वगुरुवार्ताः॥ १. इसी प्रतिष्ठा की भ० ऋषभनाथ की दो प्रतिमाएँ घोघा के जिनालय में विद्यमान हैं जिनके लेख "घोघा ना अप्रकट जैन प्रतिमा लेखो" लेख में श्री महावीर जैन विद्यालय के स्वर्ण महोत्सव ग्रंथ में प्रकाशित हैं। (१२६) खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy