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________________ है। उपरोक्त विवरणों की समीक्षा : शाह रयण और कवि भत्तउ ने अजमेरस्थ जयसिंह की राजसभा में जिस शास्त्रार्थ का उल्लेख किया है, वह भ्रामक है। यह शास्त्रार्थ वि०सं० १२३९ में उपकेशगच्छीय पद्मप्रभाचार्य के साथ अजमेर में अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान की सभा में हुआ था और इसका आँखों देखा विशद वर्णन जिनपालोध्याय ने किया है, अतः वही प्रामाणिक है। ___ उक्त गुर्वावली में आचार्य जिनपतिसूरि का उपकेशगच्छीय पद्मप्रभाचार्य के साथ जो शास्त्रार्थ अन्तिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान की राज्य सभा में विक्रम संवत् १२३९ में हुआ था/उस में आचार्य जिनपतिसूरि ने छत्र बन्ध चित्रकाव्य बनाकर पृथ्वीराज चौहान की कीर्ति का वर्णन किया था। उस वर्णन में भादानक विजय का उल्लेख है। इस भादानक विजय की पुष्टि प्रसिद्ध इतिहासवेत्ता डॉ० दशरथ शर्मा ने अपनी पुस्तक Early Chauhan Dynasties पृष्ठ ८२-८३ पर किया है। इसी प्रकार मालवा के शासक प्रतिहार जगदेव ने अभयड दंडनायक को उसके पत्र का उत्तर देते हुए लिखा-“मैंने बड़े कष्ट से अजमेर के अधिपति श्री पृथ्वीराज के साथ सन्धि की है। यह संघ अजमेर-सपादलक्ष का है। इसलिए इस संघ के साथ छेड़-छाड़ बिल्कुल भूलकर भी मत करना।' इस सन्धि की पुष्टि भी डॉ० दशरथ शर्मा ने अपनी पुस्तक Early Chauhan Dynasties के पृष्ठ ८४ पर की है। जिनपतिसूरि न केवल शास्त्रार्थ विजेता ही थे बल्कि आगमसाहित्य के धुरन्धर विद्वान् भी थे। जिनेश्वरसूरि 'प्रथम' द्वारा रचित पंचलिङ्गीविवरण और जिनवल्लभसूरि द्वारा रचित संघपट्टक पर विशद टीका इनके पाण्डित्य को प्रदर्शित करती है। आचार्य जिनपतिसूरि का आचार्यत्वकाल भी दीर्घ समय तक रहा तो इनकी शिष्य परम्परा भी विपुल संख्या में थी। इनमें से कतिपय प्रमुख विद्वानों के नाम निम्न हैं-जिनपालोध्यायसनत्कुमारचक्रिचरितमहाकाव्य आदि; पूर्णभद्रगणि-पंचाख्यान आदि; सूरप्रभाचार्य कालस्वरूपकुलक वृत्ति; जिनरत्नसूरि-निर्वाणलीलावतीसार; नेमिचन्द्र भंडारी-षष्टिशतक; सुमतिगणिगणधरसार्धशतकबृहद्वृत्ति। 卐卐卐 संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only (१२३) www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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