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________________ प्रकरण को टालने के लिए एक साथ ही दो पन्नों को उलट दिया और जो गाथा बाँची उसको छोड़ के अन्य ही गाथा-वृति को बाँचने लगे। __पूज्यश्री के पास बैठे हुए जिनहितोपाध्याय ने इस चालाकी को देखकर प्रद्युम्नाचार्य का हाथ पकड़कर कहा-"आचार्य! इन छोड़े हुए पिछले दो पन्नों को बाँच कर आगे बाँचिये।" चालाकी के पकड़े जाने से प्रद्युम्नाचार्य आकुल-व्याकुल हो गये और यों ही आगे-पीछे के पन्नों को उलटने लगे। इस अवसर पर "हेड़ावाहक' उपाधि के धारण करने वाले श्रीमालवंशोत्पन्न वीरनाग नामक श्रावक ने मामा पदवीधारी अभयड नामक शहर के कोतवाल से कहा-मामा! आपके नगर में क्या उसी पुरुष को कैद किया जाता है, जो रात्रि में चोरी करे और दिन दहाड़े चोरी करने वाला यों ही छोड़ दिया जाता है? इस बात को सुनकर कोतवाल चौंका और इधर-उधर देखता हुआ बोला-हेड़ावाहक आप क्या कहते हैं? वीरनाग बोला-मामा साहब! देखिये-देखिये, तुम्हारे गुरु प्रद्युम्नाचार्य ने चालाकी से दो पन्नों को छिपा दिया। इस बात को सुनकर चिढ़े हुए अभयड दण्डनायक ने अपने हाथ में रही चमड़े की बेंत द्वारा वीरनाग की पीठ पर आघात किया। इधर प्रद्युम्नाचार्य भी चालू प्रकरण को बाँचने लगे और पूर्ववत् पूज्यश्री जी उसकी व्याख्या विस्तार से करते रहे। बीच में ही मानो पूज्यश्री के भाग्य-बल से प्रेरित प्रद्युम्नाचार्य ने कहा-"आचार्य! इस रीति से तो देवगृह ही अनायतन होता है, प्रतिमा अनायतन नहीं समझी जाती और आप तो प्रतिमा को भी अनायतन बतलाते हैं।" पूज्यश्री हँस कर बोले-"आप स्थिरता रखिये। इस सभा के बीच आपने अपने मुख से देवगृह अनायतन होता है, यह तो स्वीकार कर लिया। इससे हमारे सभी मनोरथ सिद्ध हो गए।" प्रद्युम्नाचार्य बोले-तो क्या प्रतिमा भी अनायतन कही है? आचार्यश्री ने हँस कर कहा-जब कि देवगृह अनायतन सिद्ध हुआ तो प्रतिमा भी अनायतन सिद्ध ही समझिये। प्रद्युम्नाचार्य बोले-आपके कहने से समझें या इसमें कोई युक्ति या प्रमाण भी है? हँस कर पूज्यश्री बोले-युक्ति और प्रमाण रहित वचन हलवाहकादि गँवार लोग ही बोला करते हैं। हम नहीं बोलते। प्रद्युम्नाचार्य ने कहा-तो वह कौन सी युक्ति है? पूज्यश्री ने विचार कर कहा-सुनिये संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only (१०७) www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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