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________________ अनायतन सम्बन्धी विषय को समझा कर अपना शिष्य बना लें। मैं अभी पौषधशाला में उसको वन्दना करने के लिए गया था, वह इस विषय में परामर्श करने के लिए तैयार सा दिखता है।" सुनकर पूज्यश्री ने कहा-सेठ! बहुत अच्छा, ऐसा करने को हम तैयार हैं। इस शास्त्रार्थ की तैयारी को देखकर भणशाली गोत्रीय संभव और वाहित्र गोत्रीय उद्धरण आदि संघ के प्रधान पुरुषों ने परस्पर में परामर्श करके महाराज से कहा-"महाराज! जिस खास प्रयोजन को लेकर आप पधारे हैं, पहले उसे करना चाहिए और वाद-विवाद आदि पश्चात् करियेगा?" सेठ क्षेमंधर ने भी इसे ठीक समझा। पूज्यश्री ने कहा-भले आप लोग जैसा उचित समझें, हम वैसा करने को तैयार हैं। क्षेमंधर सेठ ने प्रद्युम्नाचार्य के पास जाकर कह दिया-आचार्य! इस समय सारा संघ उत्कण्ठावश तीर्थवन्दना के लिए उतावला है, अतः जाने की जल्दी है। लौटते समय हमारे आचार्यश्री आपके साथ आयतन-अनायतन संबंधी विचार अवश्य करेंगे। प्रद्युम्नाचार्य ने इस बात को स्वीकार करते हुए कहा-देखो, लौटती वक्त इस स्थान से बच कर मत निकल जाना। वहाँ से प्रस्थान करके सारा संघ स्तम्भनक (खंभात), उज्जयंत (गिरनार) आदि तीर्थों में जाकर ठहरा, वहाँ पर महा द्रव्यस्तव एवं महा भावस्तव से तीर्थ वन्दना तथा पूजा की गई। इससे आगे मार्ग की गड़बड़ी आदि के कारण संघ शत्रुजय तीर्थ में नहीं जा सका। ५८. जब संघ लौटकर आने लगा तब संघ में से पूज्यश्री के अनन्य भक्त श्रावकों में कई एक मनुष्य कौतुक वश संघ के पहुंचने से पहले ही आशापल्ली नगरी में आ पहुँचे और वहाँ पर किसी एक स्थानीय व्यापारी की दुकान पर बैठ गये। उन लोगों से दुकानदार व्यापारी ने पूछा-"संघ के साथ कोई आचार्य भी हैं?" उन लोगों ने कहा-"हाँ हाँ।" पुनः दुकानदार कहने लगा-"हाँ, धरामण्डल में आचार्य अनेक हैं, परन्तु प्रद्युम्नाचार्य के समान तो भरत क्षेत्र में कोई नहीं है।" इस बात को सुनकर उन लोगों को बड़ी हँसी आई और वे बोले कि-"सेठजी! यह आपने बहुत सच कहा। मालूम होता है, आपके समान भी संसार में कोई नहीं है तो फिर आचार्य के समान तो भला होता ही कहाँ से? किन्तु, इस बात को हम भी मानते हैं कि जो प्रद्युम्नाचार्य से समग्र गुणों में अधिक हैं, वे भला प्रद्युम्नाचार्य के समान कैसे कहे जा सकते हैं।" जब आशापल्ली वासियों को सूचना मिली कि श्रीसंघ नगर के समीप पहुँच गया तब प्रद्युम्नाचार्य के भक्त अभयड दण्डनायक नामक नगर कोतवाल के तत्त्वावधान (मुख्यता) में स्थानीय लोगों को एक बड़ा समुदाय संघ के संमुख पहुँचा। बड़े समारोह के साथ नगर-प्रवेश कराकर संघ को योग्ययोग्य स्थानों में ठहराया गया। पूज्य श्री को स्वच्छ-सुन्दर स्थान रहने के लिए दिया गया। वहाँ आचार्यश्री अपने मुनि-मण्डल के साथ ठहरे। (९९) संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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