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________________ इस प्रकार अपने से प्रयुक्त श्री जिनपतिसूरि जी के मुख कमल से एवकार के विषय में सैकड़ों उत्तर सुनकर गुणग्राही तिलकप्रभाचार्य जी अतिशय प्रमुदित मन से कहने लगे - " आचार्य ! आप समस्त गुजरात में सिंह की तरह निडर होकर विचरें। आपके सम्मुख प्रतिमल्ल रूप से कोई नहीं ठहर सकेगा। मैंने आपके प्रभाव को अच्छी तरह से जान लिया है। इस शुभ वचन को सुनकर महाराज के पास में बैठे हुए एक मुनि ने अपने कपड़े की खूँट में शकुन ग्रंथी बाँधी । अपने या अपने प्यारे के सम्बन्ध में कोई शुभ संवाद सुनकर कपड़े में गाँठ लगाने की प्रथा अब भी मारवाड़ में प्रचलित है । 11 इस अभूतपूर्व अपने योग्य पण्डित गोष्ठी से तिलकप्रभसूरि को अत्यन्त आनन्द हुआ। अतएव पूज्यश्री की अधिकाधिक प्रशंसा करते हुये वे अपने उपाश्रय को चले गये । ५७. इसके बाद संघ वहाँ से चलकर आशापल्ली पहुँचा। वहाँ पर साधु क्षेमंधर सेठ अपने पुत्र प्राचार्य की वन्दना करने के लिए वादीदेवाचार्य की पौषधशाला में गये । वन्दना व्यवहार के बाद प्रद्युम्नाचार्य ने कुशलवार्ता के बहाने सेठ के साथ वार्तालाप करते हुये कहा - " सेठजी ! वाद -लब्धि द्वारा जगत्त्रय विख्यात श्री देवाचार्य प्रदर्शित और पितृ-परंपरागत मार्ग को छोड़कर आप कुमार्ग में लग गये हो, इसका क्या कारण है?" उत्तर में सेठ क्षेमंधर ने कहा- मैं आपको मस्तक से वन्दना करता हुआ निवेदन करता हूँ कि मैंने अपनी समझ से अच्छा किया है जो खरतरगच्छ में सब विद्याओं के पारंगत सिद्धान्तानुयायी श्री जिनपतिसूरि जी को अपना गुरु माना है, यह कोई बुरी बात नहीं है । जरा गुस्से में आकर प्रद्युम्नाचार्य ने कहा- सेठजी ! मारवाड़ के रूखे मुल्क में जड़ लोगों को पाकर आपके ये गुरु सर्वज्ञ माने जाते हैं सो ठीक है, जहाँ और वृक्ष नहीं होता, वहाँ अरण्ड को भी कल्पवृक्ष मान लिया जाता है। लेकिन हमारा मन तो इस बात को जान कर बड़ा दुःख पाता है कि परमगुरु श्री देवसूरि के वचनामृत से पूर्ण आप लोगों की कर्णपुटी रूप नहर से सींचे गये हृदय क्षेत्र में जो विवेकांकुर पैदा हुआ था, उस पर जिन प्रवचन के विरुद्ध प्ररूपण करने में प्रवीण धूर्त लोगों के उपदेश का पाला पड़ गया, यह महान् अनर्थ हुआ । खैर "बीती ताहि विसारिये" के अनुसार अब भी आप हमसे मिल लिये यह अच्छा हुआ । सेठ क्षेमंधर ने कहा-आचार्य ! हमारे गुरु मारवाड़ को छोड़कर इस समय गुजरात में आपके पास नगारे के धौंसे के साथ आ पहुँचे हैं। यदि आप उनके सम्मुख हों तो आपको उनकी असलियत का पता लग जाय । नकली हँसी हँसते हुए प्रद्युम्नाचार्य ने कहा- सेठ शास्त्रार्थ में अपनी प्ररूपणा को स्थिर करने के लिए आप अपने गुरु को शीघ्र तैयार करें, हम तैयार हैं। अपने पुत्र प्रद्युम्नाचार्य को महाराज से प्रतिबोध मिल जाय तो अच्छा है, इस अभिप्राय से महाराज के पास आकर सेठ क्षेमंधर कहने लगा- "महाराज ! आप मेरे पुत्र प्रद्युम्नाचार्य को आयतन (९८) Jain Education International 2010_04 खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम खण्ड For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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