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आचार्य जी! जिस वाक्य में निश्चय सूचक पद का साक्षात् निर्देश न किया गया हो, वहाँ पर "सर्व वाक्यं सावधारणम्" इस न्याय के अनुसार अर्थात् सब वाक्यों के साथ निश्चय रहा हुआ है, बिना निश्चय के कोई वाक्य नहीं होता। अपनी बुद्धि से ऐसे शब्द की कल्पना अवश्य कर लेनी चाहिए। न मानने से कहीं भी व्यवस्था नहीं रहेगी। जैसे "पटमानय" अर्थात् कपड़ा लाओ। इस वाक्य में ऐसे निश्चय अर्थ को न लेने से कपड़े की जगह और ही कोई चीज क्यों नहीं लानी चाहिए? और "पटं नयेत्' इसके सुनने से कपड़े के सिवा और ही किसी वस्तु को क्यों नहीं ले जानी चाहिए? और "अर्हन् देवः सुसाधुर्गुरुः" इत्यादि वाक्यों में भी परमपद प्राप्ति के कारण अर्हन् ही देव हैं। इससे अर्हन् देव ही हैं, अदेव नहीं हैं। इसी प्रकार एकमात्र मोक्ष-मार्ग का उपदेशक होने से सुसाधु ही गुरु है। इन वाक्यों को सावधारण माने बिना उपर्युक्त पदों में व्यवस्था नहीं हो सकती। इसी प्रकार सिद्धान्त-ग्रन्थों के वाक्य भी सावधायण होने से ही मनोहर हैं, अन्यथा नहीं। यथा-"धम्मो मंगलमुक्किटुं" इत्यादि वाक्यों से यह निश्चय होता है कि धर्म ही सर्वोत्कृष्ट मंगल रूप है, न कि दही-दूब आदि। या तो यों कहा जाय कि-धर्म मंगल ही है अमंगल नहीं, अथवा धर्म उत्कृष्ट मंगल ही है, न कि दही-दूब आदि।
यह सब सुनकर तिलकप्रभसूरि ने कहा-आचार्य जी! अयोग व्यवच्छेद, अन्य योग व्यवच्छेद अथवा अत्यन्तायोग व्यवच्छेद के लिए बुद्धिमान लोग एवकार का प्रयोग करते हैं, तो आपके कहे हुये "साम्प्रतं यूयमत्रैव स्थाष्णवः" अर्थात् अब आप यहाँ ही ठहरेंगे। इस वाक्य में प्रयुक्त एवकार शब्द से उपर्युक्त तीनों में से किस का व्यवच्छेद किया गया है? यदि आप कहें कि यहाँ अयोग व्यवच्छेद है तो यह ठीक नहीं, क्योंकि विशेषण से आगे कहा हुआ एवकार अयोग व्यवच्छेद के लिए समर्थ हुआ करता है और यहाँ तो विशेषण का ही अभाव है। यदि अन्ययोग व्यवच्छेद के लिए एवकार को माना जाय तो वह भी ठीक नहीं। क्योंकि हम लोग हवा की तरह उद्यत विहारी रहते हैं, अतः हमारे लिए स्थानान्तर-योग का निषेध अशक्य है और यदि कहें कि अत्यन्तायोग व्यवच्छेद के लिए एवकार है सो भी युक्ति-युक्त नहीं। क्योंकि क्रिया के साथ पढ़ा हुआ एव शब्द ही अत्यन्तायोग निवारण में समर्थ है, किन्तु केवल नहीं। यहाँ क्रिया का सर्वथा अभाव है। इसलिए विचार मर्यादा की कसौटी पर कसने से यह आपका शब्द अयोग्य ठहरता है।
तिलकप्रभसूरि की ओर से कहे गये निष्कर्ष को सुनकर पूज्यश्री ने जरा आवेश में तेजी से कहा-हाँ, आपके कथनानुसार हमारा यह "एव" शब्द अयुक्त हो सकता है, यदि हम इसका किसी प्रकार समर्थन न कर सकें तो। परन्तु इसके समर्थन के लिये पहले हमने अनेकों युक्तियाँ दर्शाई, अब फिर आपके प्रश्न उत्तर देने के लिए हम अनेकों युक्तियाँ दिखलाते हैं। देखिये-वर्णनीय वस्तु में सन्देह अथवा विरोध उपस्थित होने पर उसे हटाने के लिए विचक्षण लोग अवधारण अर्थ वाले एवकार शब्द का प्रयोग करते हैं। जैसे कई लोग अपने युक्ति बल से आत्मा के अस्तित्व का समर्थन करते हैं, वैसे ही दूसरे लोग युक्तियों द्वारा ही आत्मा की सत्ता का खण्डन करते हैं और आत्मा का साक्षात्कार अन्य घट-पटादि पदार्थों की तरह किसी को होता नहीं। इसलिए आत्मा है या नहीं, इस
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