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________________ इसके उत्तर स्वरूप पूज्यश्री बोले-आचार्य! श्रावक मात्र को संघपति नाम देना क्या ठीक है? तिलकप्रभ-लोक में ऐसी ही भाषा बोली जाती है। पूज्यश्री उपहासपूर्वक बोले-ग्रामीण जन सुलभ भाषा का सहारा लेकर जवाब देते हैं। इसमें कोई शास्त्रीय युक्ति हो। तिलकप्रभ-आप भी तो कोई प्रमाण नहीं दे रहे हैं, लोक प्रसिद्ध भाषा को केवल अपने कथन मात्र से ही छुड़वाने का आदेश देते हैं। पूज्यश्री-वाक्यशुद्धि नामक अध्ययन के अर्थ को जानने वाले साधु लोग बहुलता से लोकप्रसिद्ध शब्दों को छोड़ देते हैं। आचार्य जी! लोगों के साथ हमारा किसी प्रकार का मत्सर नहीं है, जिससे कि हम उनकी भाषा को प्रमाणभूत न मानें। परन्तु कहने का सारांश यह है कि व्रतधारी को ऐसी भाषा बोलनी चाहिए, जिसके बोलने से माननीय पुरुषों की लघुता न होती हो। तिलकप्रभ-इस भाषा में क्या बड़ों की लघुता होती है? पूज्यश्री-इस बात को सभी कोई जानते हैं। तिलकप्रभ-कैसे? पूज्यश्री-आचार्यश्री ! संघ शब्द से साधु-साध्वी, श्रावक, श्राविकाओं का समुदाय ग्रहण किया जाता है। लिखा है-"साहूण, साहुणीणय सावय साविय चउव्विहो संघो।" इस चतुर्विध संघ के पति तीर्थंकर या आचार्य ही हुआ करते हैं। तिलकप्रभ-अकेले श्रावक समुदाय के लिए भी संघ शब्द का प्रयोग देखा जाता है। पूज्यश्री-कारण में कार्य का उपचार होने से ऐसा लगता है, जैसे 'अष्टतमायुः' अर्थात् आठ वर्ष की आयु है। 'आयुर्घतम्' घी आयु बढ़ाने वाला है। यह सब ही है, परन्त इस प्रकार सब जगह उपचार के भरोसे शब्दों का प्रयोग करने से मिथ्या-दृष्टि लोगों में कहीं उपहास भी हो सकता है। वह लक्ष्मीधर श्रावक गृहस्थ है। इसके किसी कुत्सित कार्य को देखकर लोग मजाक उड़ाते कहेंगेजैनियों में यह सर्व प्रधान है, अन्य सब इससे नीचे हैं क्योंकि यह संघ का पति है। इसके कुत्सित कर्त्तव्य को देखकर स्थाली पुलाक न्याय से समझ लेना कि जैनियों के कर्त्तव्य कैसे हुआ करते हैं, हमारे कथन का यह सारांश निकलता है। इसलिए आचार्य जी! भविष्य में इस उपचार के भरोसे शब्दों का प्रयोग करना छोड़ दें। हाँ, श्रावक के लिए संघपति शब्द का प्रयोग अन्य रीति से हो सकता है। मैं दिखलाता हूँ। तिलकप्रभ-कैसे? पूज्यश्री-बहुव्रीहि समास का आश्रय लेने से जैसे कि 'संघः पतिर्यस्यासौ संघपतिः, श्रावक मात्रः' अर्थात् संघ है पति जिसका वह संघपति प्रत्येक श्रावक हो सकता है। तिलकप्रभ-मैंने महर्द्धिक श्रावक के लिए संघपति शब्द का प्रयोग किया है। संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास (९३) Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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