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पूज्यश्री ने कहा-क्या आज आप हमारे अतिथि नहीं होंगे?
प्रसन्नचित्त से अकलंकदेव जी बोले-अतिथि तो वे हुआ करते हैं, जो देशान्तर से आये हों? हम तो यहाँ के ही रहने वाले हैं। इसलिए आपके पाहुणे (अतिथि) कैसे हो सकें? बल्कि आप हमारे अतिथि हो सकते हैं।
पूज्यश्री ने कहा-आपका कहना सही है। इस प्रकार प्रेम पूर्ण बातें करके वे लोग हर्षित चित्त से उपाश्रय को चले गये।
५६. इसके बाद दूसरे दिन वहाँ (चन्द्रावती नगरी) के श्रावक द्वादशावर्त वन्दनक देने के लिये पूज्यश्री के पास आये और प्रार्थना की कि-"भगवान् ! आप हमारी वन्दना स्वीकार कर लीजिये।"
पूज्यश्री-"जैसे तुम्हें सुख उपजे वैसे करो।" यह कहकर शान्त मुद्रा धारण करके विराज गए। तत्पश्चात् वे श्रावक लोग श्री जिनवल्लभसूरि जी के दर्शाए हुए विधिमार्ग के अनुसार वन्दना करने लगे। हर्षित होकर पूज्यश्री ने कहा-'हे महाभाग्यशाली श्रावकों! गुजरात में आठ पट वाली मुख-वस्त्रिका से वन्दना की जाती है, आप लोगों ने चार पट वाली से क्यों दी?" उन श्रावकों ने जवाब दिया कि- "हे भगवन् ! स्वर्गीय श्री अभयदेवसूरि जी महाराज ने हमें ऐसे ही करने की शिक्षा दी थी।" इस प्रकार अपने पूर्वजों की बात सुनकर महाराज को अतीव हर्ष हुआ।
इस प्रकार चन्द्रावती नगरी में. दो-चार दिन विश्राम करके महाराज संघ को साथ लिए हुए कासहृद (कांसिदरा) पहुँचे। वहाँ पर उस समय चैत्यवन्दन के लिए महाप्रामाणिक, पौर्णमासिक गच्छावलम्बी श्रीतिलकप्रभसूरि अनेक साधु परिवार सहित संघ के उतारे में आये। परस्पर में सुख-शान्ता सम्बन्धी प्रश्न किया गया। अपने गुरु की चरण-सेवा करने से जिसकी कीर्ति चारों ओर फैल रही थी, जिसने हीरों से जड़ी हुई सुन्दर रेशमी पोशाक पहन रखी है, स्वर्ग के आभरणों से अलंकृत-कामदेव के समान जिसका सुन्दर शरीर है, ऐसे मांडवी निवासी जौहरी सेठ लक्ष्मीधर श्रावक की ओर अंगुली निर्देश करते हुए तिलकप्रभसूरि ने पूज्यश्री से पूछा-"क्या आपके संघ के संघपति ये ही हैं?"
१. यह कासहृद (कांसिदरा) तो आबू रोड (खराड़ी) से मारवाड़ की तरफ आबू पर्वत के जोड़ में अभी बसा
हुआ है और चन्द्रावती का उद्वसित स्थान खराड़ी से पालनपुर की तरफ थोड़ी ही दूर बताया जाता है। इसमें यह विचारणीय है कि-आचार्यश्री जिनपतिसूरि जी महाराज शत्रुजयादि तीर्थ यात्रा निमित्त अजमेर के संघ सहित मारवाड़ आ रहे हैं तो, चन्द्रावती (खराड़ी से पालनपुर तरफ) आके फिर पीछे कासिंदरा (खराड़ी से मारवाड़ तरफ) कैसे गये होंगे? अतः संभव है कासहृद स्थान वर्तमान कासिंदरा न होकर गुजरात की तरफ में कासहृद नाम का कोई अन्य स्थान हो, या तो चन्द्रावती का उद्वस स्थान जो खराड़ी से पालनपुर तरफ के मार्ग में बताया जाता है वह न होकर खराडी से मारवाड तरफ कासिंदरा के आगे कहीं हो, यदि ऐसा न माना जाय तो जिनपालोपाध्याय लिखित युगप्रधानाचार्य गुर्वावली का लेखन आगे-पीछे होना अवश्य मानना पड़ेगा।
(९२) Jain Education International 2010_04
खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड For Private & Personal Use Only
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