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पद्य रचना करे अथवा व्याकरण, छन्द, अलंकार, रस, नाटक, तर्क, ज्योतिष और सिद्धान्त ग्रन्थों पर विचार करे। यदि हम पीछे हटें तो, यह जैसा कहे वैसा करने को तैयार हैं, परन्तु हमारे हाथ से लोक-विरुद्ध, धर्म-विरुद्ध, मल्ल युद्धादि कार्य करवाना चाहता है। इस कार्य को हम किसी भी तरह करने को तैयार नहीं है और इसके न करने से हमारा कोई हल्कापन भी न समझा जाएगा। कारण, इसी तरह कल कोई किसान कहे कि-अगर आप पण्डित हैं, तो हमारे साथ हल चलाना आदि कृषि काम करिये, क्या हम उसका कहना मान लेंगे? और यदि हम उसके कथनानुसार उस कार्य को नहीं करें तो, क्या हमारी पण्डिताई चली जाएगी? नहीं, कदापि नहीं जा सकती। यदि यह हमको जीतना ही चाहता है तो कठिन से कठिन कूट श्लोक, प्रश्नोत्तर, गुस क्रिया और कारक आदि जो इसके मन में आवे सो पूछे। अथवा वह चाहे जिस तरह भी अपनी मर्जी के अनुसार किसी भी सांकेतिक लिपि में कोई श्लोक लिखे, यदि हम इसके हृदय स्थित छन्द को न बता दें तो हमें हारा हुआ समझा जाय। किन्तु शर्त यह रहे कि यह उस छन्द को पहले ही सभ्य पुरुषों को हम न सुने वैसे कान में कहकर बतला दे, जिससे कि फिर यह अपनी बातों को बदल न सके। अथवा यह किसी छन्द के केवल स्वर या केवल व्यञ्जनों को ही लिख दे, हम यदि इसके हृदय स्थित श्लोक को न बता दें तो हम हार गये। एक बार सुने हुए श्लोक या श्लोकाक्षरों को अनानुपूर्विक (विपरीत क्रम से) यह लिख कर बतावे, या हम बताते हैं। और वर्तमान समय में प्रचलित बाँसुरी से गाई जाने वाली राग-रागिनियों के नाम परिचय देतु हुए तत्कालिक गायन स्वरूप कविता द्वारा अन्य किसी से बताए हुए कोष्ठक की पूर्ति यह करके दिखाये या हम करके दिखलाते हैं।
आचार्य के इस कथन को सुनकर राजा ने कहा-आचार्य जी महाराज! आप सब राग-रागिनियों को पहचानते हैं?
पूज्यश्री ने कहा-महाराजाधिराज! यदि किसी पण्डित के साथ शास्त्रार्थ हो तो बात करें। इस अज्ञानी मनुष्य के साथ विवाद करने से तो केवल अपना कण्ठ-शोषण करना है।
इसके उत्तर में राजा ने कहा-आचार्य! आपको चिन्तित होने की कोई आवश्यकता नहीं। अपनी बतायी हुई कोष्ठक पूर्ति सम्बन्धी कला को आप दिखलावें जिससे हमारी उत्कण्ठा पूरी हो।
पूज्यश्री बोले-हाँ, मल्लयुद्धादिक बिना इस प्रकार की आज्ञा से हमें भी हार्दिक सन्तोष मिलता है।
राजाज्ञा से सभा में उसी समय तत्काल बनायी हुई नई बाँसुरी बजाई गई, उसमें निकलती हुई नईनई राग-रागिनियों का आचार्यश्री ने परिचय दिया और तत्काल ही राजा पृथ्वीराज के न्यायप्रियता आदि गुण वर्णन स्वरूप श्लोकों की रचना करके उन्हीं श्लोकों के अक्षरों को सर्वाधिकारी कैमास से निर्दिष्ट कोठों की पूर्ति की। सूरिजी महाराज की सर्व तंत्रों में स्वतंत्र प्रतिभा को देख कर उस सभा में ऐसा कौन मनुष्य था जिसके मन रूपी कमल पर आश्चर्य लक्ष्मी ने अधिकार न जमा लिया हो?
संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास
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