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वह बोला-आज से पहले नहीं देखा।
इसी समय राजा ने अपने सामने तबेले में बंधे हुए घोड़ों की तरफ अंगुली निर्देश करते हुए कहाआचार्यश्री! उधर देखिए तो, ये हमारे घोड़े किस कारण से इस प्रकार उछल रहे हैं, इनका वर्णन करिये ! आचार्यश्री ने कुछ देर सोच कर कहा-राजन् ! सुनिये
ऊर्ध्वस्थितश्रोत्रवरोत्तमाङ्गा जेतुं हरेरश्वमिवोधुराङ्गाः।
खमुत्प्लवन्ते जवनास्तुरङ्गास्तवाऽवनीनाथ! यथा कुरङ्गाः॥ १॥ [हे पृथ्वीपते! ऊर्ध्व स्थित कानों से सुन्दर-शोभनीय मस्तक वाले आपके ये वेग वाले तेज घोड़े हरिणों की तरह आकाश की ओर उछल रहे हैं। मालूम होता है ये ऊँचे होकर सूरज के घोड़ों को जीतना चाहते हैं।] ___ इस अर्थ को सुनने से प्रसन्न मुख राजा को देखकर पण्डित लोग बोले-आचार्य! उदयगिरि नाम के हाथी पर चढ़े हुए महाराज पृथ्वीराज किस प्रकार शोभते हैं? इसका वर्णन करें। पूज्यश्री ने मन ही मन कल्पना करके इस तरह वर्णन किया
विस्फूर्जद्दन्तकान्तं लसदुरुकटकं विस्फुरद्धातुचित्रं, .. पादैर्विभ्राजमानं गरिमभृतमलं शोभितं पुष्करण।
पृथ्वीराजक्षितीशोदयगिरिमभिविन्यस्तपादो विभासि,
त्वं भास्वान् ध्वस्तदोषः प्रबलतरकराक्रान्तपृथ्वीभृदुच्चैः॥ [हे पृथ्वीराज भूपति! आप जब अपने उदयगिरि हाथी पर आरूढ़ होते हैं, तब आपकी शोभा उदयाचल पर स्थित सूर्य के समान हो जाती है। आपके हाथी के दन्त आपके आरोहण हेतु चमकते हैं, उदयाचल के शिखर भी सूर्य की किरणों से चमकते हैं। हाथी के दन्तों में सुवर्णमय कड़े सोहते हैं और पर्वत का मध्य भाग सुहावना है। हाथी उसके शरीर पर की हुई चित्रों की सजावट से सुन्दर है और उदयगिरि गेरु आदि रंग-बिरंगे खनिज पदार्थों से मनोहर लगता है। यह हाथी चार चरणों से अच्छा लगता है और वह उदयाचल आस-पास के छोटे पहाड़ों से। दोनों ही गुरुता (भारीपन) को लिए हुए हैं। पर्वत कमल और जलाशयों से सुन्दर है और गजेन्द्र शुण्डादण्ड से। हे राजन् ! आप देदीप्यमान और निर्दोष हैं। सूर्य चमकीला और रात्रि को मिटाने वाला है। आपने अपने प्रबल भुजदण्डों से बड़े-बड़े राजाओं को दबा दिया है और सूर्य ने अपनी किरणें बड़े ऊँचे-ऊँचे पर्वतों पर पहुँचा दी है। (यह श्लोक दो अर्थ वाला है। सूर्य, राजा और पर्वत, हाथी इनकी समता इसमें समान विशेषणों से बतलाई गयी है।)]
___ इस श्लोक के अर्थ को सुनकर राजा अत्यन्त प्रसन्न होकर सूरिजी को पारितोषिक देने को तत्पर हुए, तभी राजपण्डितों ने कहा-"नृपते! चारों दिशाओं में, सैकड़ों कोश के मण्डल में ऐसे महान् विद्वान् हैं जो विद्या की अधिकता से फूटते हुए पेट पर सोने का पट्टा बाँधते सुने जाते हैं। उन
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खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड
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