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निर्लज्जों का शिरोमणि पद्मप्रभाचार्य पूज्यश्री की प्रसन्नाकृति देखकर उनसे बोला-आचार्य जी! क्या हँसते हैं यदि आप भले हैं तो अभी इसी समय ही कुछ दिखलायें।
पूज्यश्री कुछ हँस कर बोले- पद्मप्रभ! स्वस्थ होकर बताओ, इन्द्रजाल किसे कहते हैं? वह बोला-आप ही बतलाइये। पूज्यश्री-देवानां प्रिय! असंभव वस्तु की सत्ता के आविर्भाव को इन्द्रजाल कहते हैं। पद्मप्रभ-कैसे? पूज्य श्री- पद्मप्रभ! आज वह इन्द्रजाल तुम्हारी आँखों के सामने ही हुआ, क्या देखते नहीं। पद्मप्रभ-वह क्या हुआ है?
पूज्यश्री ने उत्कर्षपूर्वक कहा-महानुभाव! क्या तुमने यह बात स्वप्न में भी सोची थी कि मैं उत्तमोत्तम आसनों पर बैठे हुए हजारों मुकुटधारी नरपतियों से ठसाठस भरी हुई महाराजा पृथ्वीराज की सभा में जाकर हार जाऊँगा और लोगों का हास्य पात्र बनने के लिए असंबद्ध प्रलाप करूँगा, परन्तु दैवयोग से हमारी उपस्थिति में तुम्हारे लिये यह असंभावित बात बन गई। जिस इन्द्रजाल को आप दिखलाना चाहते हैं उसमें और इसमें क्या भेद है?
पद्मप्रभाचार्य उपहास की परवाह न करता हुआ राजा को लक्ष्य करके दुष्ट अभिप्राय से कहने लगा-महाराज! आपने अतुल पराक्रम से प्रतापी राजाओं को हरा-हराकर अपने आज्ञाकारी बना लिया है। राजा लोग आपकी आज्ञा को अमृत की तरह वांछनीय मानते हैं। इस समय इस समस्त भूमण्डल के आप ही एक अद्वितीय शासक हैं। बड़े आश्चर्य की बात है कि आपके शासक होते हुए भी यह आचार्य रुपये पैसे का लोभ-लालच दे देकर भाट लोगों के मुख से अपने आपको युगप्रधान विख्यात करा रहे हैं।
राजा ने कहा- पद्मप्रभ! युगप्रधान शब्द का क्या अर्थ है?
पद्मप्रभाचार्य ने अपना मनोरथ पूरा होता हुआ समझकर सहर्ष कहा-राजन्! युग शब्द का अर्थ है "काल" प्रधान शब्द का अर्थ है सर्वोत्तम, अर्थात वर्तमान काल में जो सर्वोत्तम हो, उसको युगप्रधान कहते हैं। अब आप ही विचारिए कि युगप्रधान आप हैं या यह साधु?
इस बीच पूज्यश्री बोले-मूर्ख पद्मप्रभ! अनर्गल प्रलाप कर हमारे सामने ही राजा को प्रतारणा देना चाहते हो?
इसके बाद आचार्यश्री राजा को संबोधित कर कहने लगे-महाराज! सब प्राणियों की रुचि भिन्न-भिन्न है। किसी को कोई वस्तु प्रिय है और किसी को कोई नहीं। जो जिनको अभीष्ट है, उसके प्रति नाना प्रकार के हार्दिक प्रेमपूर्वक शब्दों का प्रयोग लोग करते हैं। जिस प्रकार मण्डलेश्वर कैमास एवं राज्य के प्रधान लोग आपके प्रति अनेक प्रकार के आदर सूचक शब्दों का प्रयोग करते हैं, उसी
संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास
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