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- पूज्यश्री- पद्मप्रभ! क्या अन्य आचार्य हमारी आज्ञा में वर्तमान आचार्यों से विशेषज्ञ हैं जो वे हमारे आचार्यों के सम्मत वामावर्तारात्रिक विधि को नहीं मानते? इत्यादि वक्रोक्तियों के द्वारा पूज्यश्री ने राजा पृथ्वीराज के समक्ष पद्मप्रभाचार्य को निरुत्तर कर दिया।
इसके बाद पद्मप्रभाचार्य राजा को सम्बोधन करके बोला-यदि आप आज्ञा दें तो अभी आपकी सभा में बैठे हुए सम्मानित सभ्यों का मनोरंजन करने के लिए कुछ कुतूहल दिखलाऊँ। जैसे कि आकाश मण्डल से उतर कर आपकी गोद में बैठी हुई अत्यन्त सुन्दर विद्याधरी को दिखला सकता हूँ। बड़े से बड़े पहाड़ को अंगुल प्रमाण में बना कर दिखा दूंगा। हरि हर आदि देवों को आकाश में नाचते हुए दिखला दूंगा। जिसमें बड़ी-बड़ी तरंगमालाएँ हिलोरें ले रही हैं, ऐसे आते हुए समुद्र के दर्शन करा दूंगा। आपकी इस नगरी को आकाश में निराधार आबाद हुई दिखा दूंगा।
इस कथन को सुनकर सभासद बोले- पद्मप्रभ! आपने यदि ऐसी इन्द्रजाल कला ही सीखी है, तो फिर आचार्य जी के साथ शास्त्रार्थ के झगड़े में क्यों पड़े? राजाधिराज से इनाम पाने के लिए लाखों ऐन्द्रजालिक आते रहते हैं। उनके साथ आप भी अपना खेल दिखलावें।
प्रसन्नचित आ० पद्मप्रभ ने कहा-राजपण्डितों! यह आचार्य (जिनपतिसूरि) अपने आप को समस्त कलाओं का पारंगत मानता है। इसलिए यदि आज महाराजा पृथ्वीराज की राजसभा में आप लोगों के समक्ष इसके पर्वत समान अखर्व-गर्व को चूर-चूर न किया जाएगा, तो सन्निपात के रोगी की तरह इसमें वायु बहुत बढ़ जाएगी, फिर इसका इलाज जरा मुश्किल हो जाएगा और यह इससे
प करन लग जाएगा।" इस कथन पर जरा हँसते हए आचार्यजी को देख कर वह बोला-"आचार्यजी ! क्या हँसते हैं? यह हँसी का समय नहीं, परीक्षा का समय है। अगर शक्ति है तो आप सब लोगों के चित्त में चमत्कार पैदा करने वाला अपना कोई कला-कौशल दिखलाइये, नहीं तो इस सभा से बाहर निकल जाइये।
इसके बाद पूज्यश्री ने श्री जिनदत्तसूरि जी के नाम मंत्र का स्मरण कर कहा- पद्मप्रभ! पहले आप अपनी आत्मशक्ति की स्फुरणा के अनुसार पूर्वोक्त इन्द्रजाल को दिखलाइये। तत्पश्चात् जो समयोचित्त होगा वह हम भी करेंगे।
कौतुक देखने के लिए उत्कण्ठित राजा पृथ्वीराज ने उत्सुकता से कहा- पद्मप्रभ! लो आचार्य ने भी अनुमति दे दी है, अब शीघ्रतापूर्वक स्वेच्छानुसार नाना प्रकार के कौतुक दिखलाइये।
पद्मप्रभ के पास दिखलाने को क्या धरा था, वह तो सार शून्य था। पूज्यश्री के पुण्य प्रभाव के वश आकुल व्याकुल होकर, पद्मप्रभ बोला-"आज रात को देवी की पूजा कर अभीष्ट देवता का आह्वान करके एकान्तचित्त से मंत्रों का ध्यान करूँगा और कल प्रातः अनेक प्रकार के इन्द्रजाल दिखलाऊँगा।" इस कथन को सुनकर पद्मप्रभाचार्य की पोल को देखकर सभासदों में हँसी के फव्वारे छूटने लगे, सभी लोगों ने दुर्वाक्य कह कर उसकी हँसी उड़ाई।
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खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड
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