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सभा भवन में प्रधानमंत्री (कैमास) पूज्यश्री की मनोहर मूर्ति को देखकर हर्षपूर्वक कहने लगाअहो! जगत् में कई एक ऐसे शांत एवं गंभीर मूर्ति महात्मा हैं कि जिनके दर्शन से नेत्रों को अतीव आनन्द मिलता है और कई दिगम्बर ऐसे मिलते हैं जिनके देखने से नैराश्य छा जाता है और आँखों को उद्वेग होता है, दूर से ही पिशाच जैसे दिखाई देते हैं। मंत्री का यह कथन सुनकर पूज्यश्री कहने लगे
पंचैतानि पवित्राणि सर्वेषां धर्मचारिणाम्।
अहिंसा सत्यमस्तेयं त्यागो मैथुनवर्जनम्॥ १॥ [चाहे जिस धर्म के अनुयायी हों, सभी ने अहिंसा, सत्य, अस्तेय, त्याग (अपरिग्रह) और ब्रह्मचर्य ये पाँच नियम पवित्र ही माने हैं। इस कारण इन पाँच नियमरूप महाव्रतधारियों की निन्दा कभी नहीं करनी चाहिए।]
इस प्रकार श्री जिनपतिसूरि जी व्याख्या करके कैमास को समझा रहे थे। इसी बीच में ही उनकी बात काट कर ईर्ष्यालु पद्मप्रभाचार्य प्रधानमंत्री को निम्न श्लोक सुनाने लगा
प्राणा न हिंसा न पिबेच्च मद्यं वदेच्च सत्यं न हरेत्परस्वम्।
परस्य भार्या मनसा न वाञ्छे स्वर्गं यदीच्छे विधिवत्प्रविष्टुम्॥ [अर्थ-किसी के प्राणों की हिंसा नहीं करनी चाहिए, मद्य नहीं पीना चाहिए और पराई स्त्री की मन से भी वांछा नहीं करनी चाहिए। जिस पुरुष को विधिपूर्वक स्वर्ग-प्रवेश की इच्छा हो, वह उपर्युक्त कार्यों को भूल-चूक कर भी न करे।]
इन श्लोक को सुनकर पूज्यश्री बोले-अहा हा! कैसा बढ़िया शुद्ध उच्चारण है? पद्मप्रभाचार्य-आप मेरी हँसी उड़ाते हैं?
पूज्यश्री-महानुभाव पद्मप्रभ! इस पंचम आरे में लोगों का ज्ञान अधूरा है, किसकी हँसी की जाए और किसकी न की जाए?
पद्मप्रभाचार्य-तो फिर आपने यह आक्षेप कैसे किया कि कैसा शुद्ध उच्चारण है। पूज्यश्री-महाशय! पण्डितों की सभा में शुद्ध उच्चारण करने से ही मुख की शोभा है। पद्मप्रभाचार्य-क्या कोई ऐसा भी है जो मेरे बोले हुए श्लोकों में अशुद्धियाँ निकाल सके। पूज्यश्री-यदि ऐसा घमंड है तो उसी श्लोक को फिर से बोलिये।
जनार्दन, विद्यापति आदि राजपण्डितों ने भी कहा-"पण्डित महानुभावों! श्री पद्मप्रभाचार्य जी श्लोक बोलते हैं, उसे आप लोग जरा सावधान होकर सुनें।" श्री पद्मप्रभाचार्य भीतर से तो क्षुब्ध हो रहा था, फिर भी धृष्टता के साथ श्लोक बोलने लगा। सब सदस्यों को साक्षी बना कर पूज्यश्री ने उसके श्लोक में दस अशुद्धियाँ दिखलाईं और कहा-महापुरुष! इस प्रकार बोलने से शुद्ध समझा जाता है
संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास
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