SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इस बात को सुनकर वे बोले-"असाधारण शौर्यशाली सिंह यदि अपने समान प्रकृति वाले सिंह से स्पर्धा करे तो वह उचित भी हो सकता है, परन्तु गीदड़ होकर यदि तुम सिंह के साथ स्पर्धा करना चाहते हो तो निश्चय ही मरण की इच्छा रखते हो।" दूसरे पक्ष के श्रावक भी वहाँ आ गये। दोनों दलों में विवाद होने लगा। उन्होंने होड़ के साथ शास्त्रार्थ का क्रम निर्धारित किया। इस झगड़े का समाचार अजमेर में श्री जिनपतिसूरि जी के पास पहुँचा। महाराज ने विपक्षी की पराजय के लिए तथा संघ की प्रसन्नता के वास्ते जिनमत उपाध्याय को वहाँ भेजा। फिर भी संघ वालों ने विचार किया-" पद्मप्रभाचार्य मिथ्याभाषी हैं, कह देगा पहले मैंने जिनपतिसूरि को जीत लिया था, इसलिए वे तो मेरे सामने ठहर नहीं सकते थे, अतएव अपने पंडित को भेजा है अतः आचार्य महाराज स्वयं ही इसको जीते!" यह निश्चय करके जिनमत उपाध्याय को साथ लेकर सभी श्रावक महाराज के पास अजमेर गये। अजमेर में उस समय राजा पृथ्वीराज चौहान राज्य करते थे। अजमेर के राजमान्य श्रावक रामदेव ने राजमहलों में जाकर राजा से प्रार्थना की-पृथ्वीपते! हमारे गुरु महाराज का एक श्वेताम्बर साधु के साथ शास्त्रार्थ होना निश्चित हुआ है। इसलिए निवेदन है कि विद्वान् मंडली मंडित आप की सभा में वह शास्त्रार्थ हो! ऐसी हमारी कामना है। अतएव आप कृपा करें और इसके लिए मौका दें। शास्त्रार्थप्रेमी राजा पृथ्वीराज ने कहा-इसके लिए अभी ही अवसर है। सेठ रामदेव ने निवेदन किया-स्वामिन् ! दूसरा साधु पद्मप्रभ यहाँ नहीं है फलवर्द्धिका (फलौदी) में है। विनोदी राजा ने कहा-भाटों को भेज कर उसे मैं बुला दूँगा। तुम अपने गुरु को तैयार करो। सेठ रामदेव ने कहा-राजन् ! हमारे गुरु तो यहाँ ही हैं। राजा ने भाटों के लड़कों को भेजकर फलौदी से पद्मप्रभाचार्य को बुलाया। इसी बीच महाराज ने दिग्विजय करने के निमित्त नरानयन की तरफ अपनी विशाल सेना के साथ प्रस्थान किया। उस समय सेठ रामदेव ने राजा से फिर अर्ज किया-राजन्! हमारे लिए क्या आदेश दिया है। प्रतिज्ञापालक राजा पृथ्वीराज ने कहा-तुम अपने गुरु जी से कहो कि कार्तिक शुक्ला सप्तमी का दिन शास्त्रार्थ के लिए निश्चित है। सेठ रामदेव ने आ० श्री जिनपतिसूरि जी से कहा, अतः वे नर-समूह के साथ में श्री जिनमतोपाध्याय, पं० श्री स्थिरचन्द्र, वाचनाचार्य मानचन्द्र आदि मुनिवृन्द को साथ लेकर उस दिन नरानयन राजसभा में जा पहुंचे। पद्मप्रभ भी भाटों के लड़कों के साथ वहाँ आ पहुँचा। राजा ने अपने प्रधानमंत्री कैमास को आज्ञा दी कि-"मैं पीछे आऊँ वहाँ तक तुम पंडितराज वागीश्वर, जनार्दन गौड़ और विद्यापति आदि राज पंडितों के समक्ष इनका शास्त्रार्थ होने दो।" ऐसा कहकर राजा पृथ्वीराज व्यायाम करने के लिए व्यायाम घर की ओर चले गये। (६६) Jain Education International 2010_04 खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy