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________________ पश्चात् यह प्रति आज राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर में संरक्षित है। मुनि जी ने इसका लेखनकाल वि०सं० १२०४ माना है और अपने आलेख में इसका उल्लेख भी किया है। कागज पर लिखित होने के कारण यह अब तक भारत में प्राप्त प्राचीनतम प्रतिलिपि है। आचार्य जिनचन्द्रसूरि ने भी जिनदत्तसूरि प्रवर्तित वर्णन जैन बनाने की परम्परा में जैनेतरों को प्रतिबोध देकर मंत्रिदलीय (महतियाण) ज्ञाति की स्थापना कर जिनशासन की प्रभावना की । इस ज्ञाति के लोग अधिकांशतः उत्तरप्रदेश और बिहार प्रान्त में निवास करते थे। संभवतः यह जाति बाद में श्रीमाल जाति में सम्मिलित हो गयी । इनके भालस्थल पर मणि थी, इसीलिये ये मणिधारी के नाम से भी जाने जाते रहे। द्वितीय दादागुरु के रूप में भी इन्हें पूज्य माना जाता है। इनका स्वर्गवास स्थल मेहरौली (दिल्ली) है, जहाँ इनके प्राचीनतम चरणचिह्न स्थापित हैं । यह स्थान भी चमत्कारपूर्ण माना जाता है। परवर्ती गुर्वावलीकारों के अनुसार इन्होंने अपनी मृत्यु से पूर्व ही श्रावकों से कहा था कि दाह संस्कार के समय एक पात्र में दूध वहाँ पर रखा जाये, किन्तु वियोगव्यथा में श्रावकगण यह बात भूल गये । एक योगी को यह बात किसी तरह ज्ञात हो गयी थी और उसने उक्त विधि से वह मणि प्राप्त कर ली। यह भी कहा जाता है कि उक्त योगी ने अपनी वृद्धावस्था में जिनचन्द्रसूरि के पट्टधर को तदनुरूप अतिशययुक्त मानकर और उनकी परीक्षा लेकर वह मणि उन्हें सौंप दी। बाद में वह मणि कहाँ गयी इसका कुछ पता नहीं लगता । बाडी पार्श्वनाथ ग्रन्थ भंडागार, पाटन में सटीक हैमानेकार्थसंग्रह की वि०सं० १२८२ में लिखी गयी प्रति संरक्षित है। इसके पद्यांक ५-६ का सारांश यह है कि मरुकोट्ट नगर के राजा सिंहबल की सम्मति से धर्कटवंशीय गोल्ल नामक श्रावक ने चन्द्रप्रभ का मंदिर बनवाया और उसकी प्रतिष्ठा जिनचन्द्रसूरि से करवायी । इस प्रशस्ति में जिनचन्द्रसूरि के लिये वादिगजकेशरी ऐसा विशेषण प्रयुक्त किया गया है। यह प्रशस्ति जिनपतिसूरि के श्रावक शिष्य द्वारा लिखवायी गयी थी। (द्रष्टव्य-मुनि जिनविजय जैन पुस्तक प्रशस्ति संग्रह, भाग -१, प्रशस्ति क्रमांक ८) 蛋蛋 संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only (६१) www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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