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विशेष
जिनदत्तसूरि :- परवर्ती समस्त खरतरगच्छीय गुर्वावलीकारों एवं अनेक ग्रन्थकारों ने अपनी कृतियों एवं खरतरगुरुगुणवर्णनछप्पय में उल्लेख किया है कि महादेवी अम्बिका प्रदत्त युगप्रधान पद को ये अलंकृत करते थे। अम्बिकादत्त वह श्लोक निम्नलिखित है :
दासानुदासा इव सर्वदेवा, यदीय पादाब्जतले लुठन्ति ।
मरुस्थली कल्पतरुः सभूजीयात्, युगप्रधानो जिनदत्तसूरिः॥ ठकुरफेठ ने "खरतरगच्छीययुगप्रधान चतुष्पदिका" में अम्बिकादेवी के स्थान पर शासनदेवी का उल्लेख किया है। इसी समय से अम्बिकादेवी खरतरगच्छ की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रसिद्ध हुई।
ग्रन्थकारों में इनके सम्बन्ध में जो विशेष जानकारी प्राप्त होती है, वह इस प्रकार है :एक लाख तीस हजार व्यक्तियों को मदिरा, मांस इत्यादि हिंसाजनक कार्यों का त्याग करवा कर उन्हें ओसवाल जाति में सम्मिलित कर ५२ गोत्रों की इन्होंने स्थापना की थी। यही कारण है कि सम्पूर्ण जैन समाज में श्रद्धालु उपासकों ने इनको प्रथम दादा गुरुदेव के नाम से सर्वदा स्मरण किया है। भारत के कोने-कोने में इनके चमत्कारों से प्रभावित होकर उपासना हेतु मन्दिरों में, स्तूपों में, दादावाड़ी शब्द से प्रचलित स्थानों में इनकी प्रतिमा और चरणचिह्न स्थापित हुए हैं और आज भी यह क्रम जारी है। इनके चमत्कारों से प्रभावित होकर लाखों जैन एवं जैनेतर भक्त इनकी आज भी पूजा एवं उपासना करते हैं और उनके मनोवांछित कार्य भी पूर्ण होते दिखाई देते हैं।
सोमराजादि देवगण, पीर एवं योगिनियाँ भी इनके समक्ष सदैव उपस्थित रहा करती थीं।
ये जैन आगम के तो उट्भट विद्वान् थे ही और प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत आदि भाषाओं पर भी इनका पूर्ण आधिपत्य था। चर्चरी, उपदेशरसायन आदि अपभ्रंश भाषा में रचित कृतियाँ अपभ्रंशकालीन रचनाओं में उत्कृष्ट कृतियाँ मानी जाती हैं।
गुर्वावलीकार जिनपालोपाध्याय ने इनके स्वर्गवास की तिथि आषाढ़ वदि ११ लिखा है किन्तु इस गुर्वावली के अतिरिक्त अन्य समस्त गुर्वावलियों एवं जीवनवृत्तान्तों में स्वर्गगमन की तिथि आषाढ़ शुक्ल ११ का ही उल्लेख प्राप्त होता है और यही तिथि आज मान्य भी है।
__कहा जाता है कि जिनदत्तसूरिजी महाराज की वह चादर जो दाह संस्कार के समय प्रज्ज्वलित चिता में भी जली नहीं थी, वह जैसलमेर ज्ञान भंडार में आज भी सुरक्षित है और पूजित है।
जैसलमेर ज्ञान भंडार में उनके नामांकित स्वयं के स्वाध्याय के लिये कई ग्रन्थ प्राप्त होते हैं और उस समय उन ग्रन्थों की सुरक्षा हेतु चित्रित ४-५ काष्ठ पट्टिकायें प्राप्त होती हैं जिनमें
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खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड For Private & Personal Use Only
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