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________________ ही उत्तर दिया- " तुम्हारा मुख मर्दन करने के लिए और अपने मुख की शोभा बढ़ाने के लिये ।" वह पुरुष इसका कुछ भी उत्तर न दे सका और अपना सा मुँह लेकर चला गया । सोमचन्द्र मुनि धर्मशाला बहुत से राज्याधिकारियों के पुत्र पंजिका पढ़ते थे, सोमचन्द्र मुनि भी वही पञ्जिका पढ़ते थे । एक दिन अध्यापक ने योग्यता की जाँच करने के लिए पूछा - " सोमचन्द्र ! न विद्यते वकारो यत्र स नवकारः अर्थात् वकार जिसमें न हो वह नवकार यह अर्थ ठीक है न?" सोमचन्द्र मुनि ने कहा"नहीं, "नवकरणं नवकारः" नवकार शब्द का अर्थ नव करण यानि आत्म कल्याण के साधन रूप नव पद है जिसमें वह नवकार, ऐसा होना चाहिए।" ऐसा उत्तर सुन कर अध्यापक ने विचारा कि'बराबर उत्तर देने वाला है - इसके साथ उत्तर - प्रत्युत्तर करना जरा टेढ़ी खीर है ( ऐरा - गैरा पंच कल्याणी इसके साथ भिड़ नहीं सकता) । " 44 एक समय लुंचन का दिन होने से सोमचन्द्र मुनि पाठशाला न जा सके। पाठशाला का यह नियम था कि यदि एक भी विद्यार्थी अनुपस्थित हो तो उस दिन पाठशाला बंद रखी जाए। उस दिन गर्विष्ठ अधिकारी- पुत्रों ने आचार्य से कहा- " भगवन् ! कृपया पाठ पढ़ाइये । सोमचन्द्र के स्थान पर हमने पत्थर रख दिया है, इसे आप सोमचन्द्र ही समझ लीजिए।" आचार्य ने उन सब के अनुरोध से प्रचलित पाठशालीय नियम को तोड़कर उस दिन सब को पाठ पढ़ाया। दूसरे दिन सोमचन्द्र मुनि पाठशाला आये । उनको अपने कतिपय साथियों से पहले दिन की बातों का पता लगा । सोमचन्द्र मुनि ने अध्यापक आचार्य से कहा- " आपने बड़ा उत्तम काम किया जो मेरी अनुपस्थिति में मेरे स्थान पर पत्थर रख कर काम निकाल लिया । परन्तु आप कृपा करके आज तक पढ़ाया हुआ पंजिका पाठ मुझसे भी पूछिए और इनसे भी, जो जवाब न दे सके उसे ही पत्थर समझना चाहिए।" अध्यापक गुरु ने कहा- " सोमचन्द्र ! तू सुगन्ध युक्त कस्तूरिका की तरह प्रज्ञादि गुणों से युक्त है । मैं तेरे को भली-भाँति जानता हूँ परन्तु इन मूर्खों ने पढ़ाने के लिये बार-बार अनुरोध किया, अतः ऐसा किया। तुम हमें क्षमा करो!" २९. जब सोमचन्द्र मुनि अन्य शास्त्रों को पढ़ कर तैयार हो गए तब हरिसिंहाचार्य ने इनको समस्त शास्त्रों की वाचना दी और अपने पास की मंत्र पुस्तिका एवं वह कपलिका (कँवली-पुठा) भी जिससे स्वयं उन्होंने विद्याभ्यास किया था, दे दी। देवभद्राचार्य ने प्रसन्न होकर अपना कटाखरण (काष्ठोत्कीर्णक-काष्ठ पट्टिका पर लिखने का एक उपकरण ) दिया, जिससे उन्होंने महावीरचरित आदि चार कथा शास्त्र काष्ठ की पट्टिका पर लिखे थे । पण्डित सोमचन्द्र गणि इस प्रकार सर्व सिद्धान्तों के ज्ञाता होकर विचरने लगे । ज्ञानी, ध्यानी, मनोहारी और आह्लादकारी सोमचन्द्र गणि को देखकर उपासक वर्ग अतीव आनन्दित होता था । ३०. गच्छ के प्रधान और वयोवृद्ध श्री देवभद्राचार्य (जो गच्छ के संचालक थे) ने जब आचार्य जिनवल्लभसूरि का देवलोक गमन सुना तो इन्हें बड़ा दुःख हुआ । कहने लगे - " स्वर्गीय गुरु श्री अभयदेवसूरि जी के पट्ट को जिनवल्लभसूरि जी उज्ज्वल कर रहे थे परन्तु क्या किया जाए? संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only (४१) www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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