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(७) सप्तभाषी आत्मसिद्धि
SAPTABHASHI ATMASIDDHI
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ORIGINAL AUTHOR'S
कर्ताकृति |
GUJARATI
१. गुजराती
જીવ કર્મ કર્તા કહો, પણ ભોકતા નહિ સોય; શું સમજે જડ કર્મ કે, ફળ પરિણામી હોય? ૭૯
२. संस्कृत
३. हिन्दी
HINDI
४. मराठी
शंका ४ - शिष्य उवाच: स्यादात्मा कर्मणः कर्ता किन्तु भोक्ता न युज्यते।
SANSKRIT किं जानाति जडं कर्म येन तत् फलदं भवेत् ॥७९॥ शंका - शिष्य उवाच : जीव कर्म-कर्ता रहो, किन्तु न भोक्ता सोय | क्या समझे जड़ कर्म जो, फल परिणामी होय ? ||७९ ।। शंका ४ थी: जीवास कर्म-कर्ता म्हणवे, भोक्ता परी न तो ठरतो। MARATHI न कळे जडकर्मा की, कर्मासम, कर्मभोग तो फळतो॥७९।। শংক-শিষ্য উবাচ। জীবকে কর্মের কর্তা মানলেও, ভােক্তা হবে কেন।
BENGALI জড় কমতে জ্ঞান নাই, ফল দাতা হবে কেন ? ॥ ৭৯ । ಸಂದೇಹ: ಶಿಷ್ಯನು ಕೇಳಿದ್ದು:
KANNADA ಜೀವ್ ಕರ್ಮ್ ಕರ್ತಾ ಕಹೋ, ಪಣ್ ಭೋಕ್ತಾ ನಹಿ ಸೋಮ್ | ಶುಂ ಸಮ್ಜೇ ಜಡ್ ಕರ್ಮ್ ಕೇ, ಫಳ್ ಪರಿಣಾಮೀ ಹೋಮ್ 179||
५. बंगला
६. कन्नड़
७. अंग्रेजी
Doubt of disciple-4: The soul may bind, but not receives, The fruits thereof, who likes the worse? No knowledge lifeless bondage has, How can it allot the fruit as worth. 79
ENGLISH
•जिनभारती .JINA-BHARATI .
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