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________________ आत्मा शब्द से अनंत पर्यायों में रहने वाले अनंत धर्मात्मक नित्य द्रव्य का सूचन होता है।' आत्मसाधक श्रीमद् राजचंद्र के शब्दों मे द्रव्य की नित्यता इस प्रकार स्पष्ट हुई है- “संपूर्ण रूप से द्रव्य का नाश तो होता ही नहीं, अगर द्रव्य का ही नाश हो जायेगा तो हे साधक! तू खोज कि वह किसमें मिश्रित होगा, अर्थात् तुझे समझ में आ ही जायेगा क्योंकि चेतन चेतनानंतर नहीं होता।" __ "बचपन, युवा एवं प्रौढ़ अवस्था में एक ही आत्मा द्रव्य है मात्र अवस्थागत परिवर्तन से आत्मा नहीं बदलता, वैसे ही पर्याय परिणमन तो होता है पर द्रव्य नित्य (अनाशवान) ही है।" द्रव्य के त्रैकालिक होने में कारण है, क्योंकि जिसका उत्पाद होता है विनाश भी उसी का होता है। द्रव्य तो न किसी का उत्पाद है और न उसका व्यय होता है। वही जन्मता और वही मरता है अर्थात मात्र उसमें पर्याय परिणमन होता है, सर्वथा नाश नहीं। इस प्रकार का एकत्व तभी संभव है जब कोई उत्पत्ति और व्यय होते हुए भी ध्रुव हो। उत्पत्ति और विनाश में नित्य रहने वाला एकत्व भी दो प्रकार का है, मुख्य और उपचरित। आत्मा आदि में तो मुख्य एकत्व होता है जैसे जो आत्मा नरक में थी वही अब मनुष्य है; जो आत्मा बचपन में थी वही जवानी और बुढ़ापे में है इत्यादि में मुख्य एकत्व ज्ञान है और सादृश्य युक्त वस्तु में उपचरित एकत्व होता है, जैसे काटने के बाद पुनः उत्पन्न हुए नख और केश।" परिणमन अस्तित्व की अनिवार्यता है:- परिणमन करना अस्तित्व का स्वभाव है। जिसमें प्रतिक्षण परिणमन की क्षमता नहीं होती वह अपनी सत्ता स्थायी नहीं रख सकता। यह अस्तित्व गत परिणमनशीलता आरोपित नहीं है। द्रव्य का स्वयं का स्वभाव है कि वह उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य युक्त हो।' स्वभाव में स्थिति 1. अत्र चात्मशब्देनानंतेष्वपि-द्रव्यं ध्वनितम् स्याद्वाद. 22.203 2. क्यारे कोई... केमां भले तपाम आत्मसिद्धि 70. 3. आत्मा द्रव्ये नित्य एकने थाय आ. सि. 68. 4. आ. सि. 66. 5. सो चेव जादि-पज्जाओ प.का. 18. 6. द्विविधं (ह्येकत्वं मुख्यमुपचरितं-सादृश्ये तदुपचरितमिति अष्टस. 161. 7. प्र.सा. 95.96. 31 ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002592
Book TitleDravyavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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