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________________ नहीं होती मात्र रूपांतर होता है। प्रकाश, तापमान, चुम्बकीय आकर्षण आदि का ह्रास नहीं होता, वे तो एक दूसरे में मात्र परिवर्तित होते हैं।' क्षण-क्षण में परिवर्तनशील पदार्थ यदि समाप्त होते तो आज सृष्टि का यह स्वरूप नहीं होता। परिवर्तन के अभाव में मात्र उत्पाद से सृष्टि का यह स्वरूप संभव नहीं था। _ 'सन्मति तर्क' में इस उत्पाद-व्ययरूप परिणमन को प्रयत्नजन्य और अप्रयत्नजन्य दो प्रकार का कहा है। प्रयलजन्य वह है जो कि अपरिशुद्ध है। इसे समुदायवाद भी कहा जाता है।' परिणमन अस्तित्व का ही स्वभाव है। 'सद्' का यह लक्षण ईश्वरवादियों की मान्यता का प्रतिरोध करता है। ईश्वरवादियों के अनुसार परिणमन ईश्वर द्वारा प्रेरित है। कहा भी है- ईश्वर से प्रेरित जीव ही स्वर्ग की ओर प्रस्थान करता है। ईश्वर के सहयोग बिना जीव सुख-दुःख को भी नहीं प्राप्त कर सकता।' प्राणी के प्रयत्नों द्वारा होने वाले परिवर्तन को प्रयलजन्य और अन्य किसी द्रव्य के सहयोग बिना के प्रयत्न होने वाले को अप्रयत्नजन्य कहते हैं। वैशेषिक मात्र प्रयत्नजन्य परिणाम ही स्वीकार करते हैं।' यह प्रयलजन्य और अप्रयलजन्य परिणमन सामुदायिक और वैयक्तिक, दो प्रकार का है। दूध में शक्कर मिलाने से दूध में होने वाली मधुरता की उत्पत्ति सामुदायिक प्रयत्नजन्य उत्पाद है। अलग-अलग रहने वाले अवयवों को मिलाकर या जुड़े हुए अवयवों को अलग कर जो उत्पाद और विनाश किया जाता है, वह सामुदायिक उत्पाद एवं विनाश है; और एक ही द्रव्य के आश्रित न होने के कारण यह अपरिशुद्ध परिणमन है। सामुदायिक उत्पाद और विनाश, स्कंध सापेक्ष होने के कारण और स्कंध 1. मुनि नथमलजी - जैन धर्म और दर्शन पृ. 330. 2. उत्पादध्रुवविनाशैः... दृश्यते द्रव्यानु. त. 9.2. 3. उपाओ दुवियाओ- अपरिसुद्धा स.त. 3.32 4. ईश्वरप्रेरितो गच्छेत्, स्वर्ग वा श्वभ्रमेव वा। अन्योजंतुरनीशोयमात्मनः सुखदुःखयोः, महाभारत वनपर्व30.28 3. क्षित्यादयो बुद्धिमत्कृर्तकाः कार्यत्वाद् घटवदिति। उद्धृतोयम् स्याद्वम. पृष्ठ 32 28 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002592
Book TitleDravyavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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