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________________ कल्पना हुई होगी। सृष्टि "द्रव्यमय है"; हमारे सामने जड़ चेतन चेतन जो कुछ है, वह सब कुछ द्रव्य है। अन्य भारतीय दर्शनों में भी 'द्रव्य' शब्द प्रयुक्त हुआ है, जिसका विस्तारपूर्वक विवेचन आगे के पृष्ठों में है। जैन दर्शन का द्रव्य ही उपनिषद् का सत् है, एवं जैन दर्शन में भी 'सत्' और 'द्रव्य' पर्यायवाची हैं। सांख्य पुरुष-प्रकृति के अर्थ में, चार्वाक भूतचतुष्टय के अर्थ में और न्याय-वैशेषिक परमाणुवाद के अर्थ में 'द्रव्य' शब्द को ग्रहण करते हैं। भारतीय दार्शनिकों के विभिन्न मतः-विविधता और विशिष्टता से भरपूर यह रंगबिरंगी सृष्टि अनेक दार्शनिकों के चिंतन का विषय रही है। उनके लक्ष्य एवं उद्देश्य में भिन्नता हो सकती है। उनके जैसे तत्वज्ञ संत इस सृष्टि की तह में इसलिये जाना चाहते हैं ताकि इसका असली स्वरूप पहचानकर उसके प्रति विरक्त बनें एवं अन्य को भी निवृत्ति का मार्ग प्ररूपित कर सकें। दार्शनिक मात्र अपनी अन्तरनदी में उफनती जिज्ञासाओं को समाहित करने हेतु इसे जानना चाहता है। मतों की इस भिन्नता ने जहाँ एक ओर उदारवाद का परिचय दिया वहीं दूसरी ओर अवधारणाएँ भिन्न-भिन्न बनती गईं। सृष्टि के प्रश्न पर भी अनेक अवधारणाएँ बनीं। आगे के कुछ अनुच्छेदों में द्रव्य एवं सृष्टि के विषय में भिन्न-भिन्न दार्शनिक मतों को प्रस्तुत किया जा रहा है। उपनिषद् के अनुसार द्रव्य एवं सृष्टि:-सर्वप्रथम यहाँ असत् था, इस असत् मे सत् की उत्पत्ति हई। कुछ ऋषियों के मत में असत् से सत् की उत्पत्ति नहीं हो सकती। सर्वप्रथम सत् ही था, उसने सोचा “मैं अनेक होऊ" और सत् की इसी कल्पना से सृष्टि का निर्माण हुआ। उपनिषद् आत्मा और ब्रह्म को अभिन्न मानता है। "यह सब ब्रह्म ही है और आत्मा ही ब्रह्म है। चंद्रमा और सूर्य ब्रह्मा की आँखें, अंतरिक्ष और दिशाएँ श्रोत्र और वायु इसका उच्छवास 1. "असतः सदजायत' छान्दोग्य. 6.2.1 2. कुतस्तु खलु सौम्य एवं स्यादिति होवाच कथमसतः सज्जायेतेति" सत्वेव सोम्येदमणु आसीत्। एकमेवाद्वितीयम्। तदैक्षत बहुस्यां प्रजायेयेति।" छान्दोग्य. 6.2.2 3. "सर्वं हि एतद् ब्रह्म अयमात्मा ब्रह्म" माण्डूक्य.... 4. मुण्डोकपनि. 1.1 13 ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002592
Book TitleDravyavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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