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पुद्गल के प्रकार-पुद्गल दो प्रकार के होते हैं (क) जीव द्वारा ग्रहण किये हुए, (ख) और ग्रहण नहीं किये हुए पुद्गल।'
पुद्गल द्रव्य के एक अपेक्षा से 23 भेद भी होते हैं। इन 23 भेदों में मुख्य आठ भेद हैं। इन भेदों को वर्गणा भी कहते हैं-औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस, कार्मण, श्वास, वचन और मन।
औदारिक-पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु और वनस्पति इनके द्वारा औदारिक शरीर का निर्माण होता है।
वैक्रिय-इसका संस्कृत में वैकुर्विक रूप होता है। इसका अर्थ है विविध क्रिया। विशिष्ट क्रिया को करने में सक्षम विक्रिया है। उस विक्रिया को करने वाला वैक्रिय शरीर है। इस शरीर के पुद्गल मृत्यु के पश्चात् कपूर की तरह उड़ जाते हैं।
आहारक-विशिष्ट योगशक्ति संपन्न चौदह पूर्वधारी मुनि किसी विशिष्ट प्रयोजन विशेष से जिस शरीर की संरचना करते है, वह आहारक शरीर है।
तैजस-जो दीप्ति का कारण है और जिसमें आहार पचाने की क्षमता या सामर्थ्य होती है, वह तैजस शरीर है। इस शरीर के अंगोपांग नहीं होते। तीनों शरीरों में यह शरीर अधिक सूक्ष्म होता है।
कार्मण-जो शरीर चारों शरीर के निर्माण का कारण है और जिस शरीर का निर्माण ज्ञानावरणीय आदि आठ प्रकार के कर्म पुद्गलों से होता है, वह कार्मण शरीर है। तैजस और कार्मण संसारी आत्मा के साथ रहता ही है। इन दोनों शरीरों के छूटते ही आत्मा शुद्ध बन जाती है।'
श्वासोच्छ्वास-यह श्वास लेने और निकालने योग्य पुद्गल समूह है।
भाषा-शब्द भी (वचन) पुद्गल की ही पर्याय है क्योंकि बोलते समय भाषा का भेदन-बिखराव होता है। यह चार प्रकार की है-सत्य, असत्य, मिश्र
और व्यवहार भाषा। 1. ठाणांग 2.232 2. गोम्मटसार (जीवकाण्ड) 593.94 3. प्रज्ञापना 12.901 4. भगवती 13.77.9
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