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जैसे पृथ्वी, पर्वत आदि।' (2) स्थूलः-जो स्कंध पृथक्-पृथक् होकर पुनः मिल सके, वे स्थूल कहलाते
हैं, जैसे घी, जल, तेल आदि।' (3) स्थूल सूक्ष्म-यह स्कंध देखने में आते हो, परंतु भेदे नहीं जा सकते या
हाथ आदि से ग्रहण नहीं किये जा सकते वे, स्थूलसूक्ष्म हैं, जैसे प्रकाश,
छाया, अंधकार आदि।' (4) सूक्ष्मस्थूल-चार इन्द्रियों से (चक्षुरिन्द्रिय के अतिरिक्त) जिनके विषयों
को ग्रहण किया जा सके, परंतु जिनका स्वरूप दिखायी दे, वह सूक्ष्म
स्थूल है, जैसे शब्द, रस, गन्ध, स्पर्श।' (5) सूक्ष्म-जिनका इन्द्रियों द्वारा ग्रहण नहीं किया जा सके अर्थात जो इन्द्रियों
से अगोचर है, वे सूक्ष्म हैं-जैसे कर्मवर्गणा आदि।' (6) सूक्ष्मसूक्ष्म-ये अत्यंत सूक्ष्म स्कंध, जो कर्मवर्गणा से भी छोटे द्वयणुक पर्यंत
पुद्गल होते हैं, इनको भी इन्द्रियों से नहीं देखा जा सकता, सूक्ष्म सूक्ष्म कहलाते हैं।
पुद्गल परिणमन-ठाणांग में पुद्गल परिणमन के तीन कारण स्पष्ट किये गये हैं:(1) प्रयोग परिणत-किसी भी जीव द्रव्य द्वारा गृहीत पुद्गल, जैसे जीव शरीर
आदि। (2) मिश्र परिणत-जीव के प्रयोग तथा स्वाभाविक रूप से परिणत पुद्गल
जैसे मृत शरीर। (3) विनसा परिणत-जिनका परिणमन या रूपान्तरण स्वभाव से ही हो जाता
है-जैसे बादल, उल्कापात आदि।' 1. नियममार गा. 22 पूर्वार्द्ध 2. नियमसार गा. 22 उत्तरार्द्ध 3. नियमसार गा. 23 पूर्वार्द्ध 4. नियममार गा. 23 उत्तरार्ध 5. नियमसार गा. 24 पूर्वार्द्ध 6. नियमसार 23 उत्तरार्ध 7. ठाणांग 3.401
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