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का प्रयत्न किया जाय तो काश्मीर में स्थित उपकरण से निकलने वाली लेसर किरणें कन्याकुमारी में रखी पंतीली में चाय उबाल सकती है।
एक गतिमान यान को पृथ्वी से ही लेसर किरणों द्वारा शक्ति पहुँचायी जा सकती है, जैसे कोई उपग्रह गति मंद होने के कारण नीचे गिरने लगे तो लेसर किरणों के दबाव से अपनी कक्षा में स्थापित किया जाता है। लेसर की एक घड़ी बनाई है, जो अंधों को मार्ग दर्शन दे सकती है। घड़ी की नोक से लेसर किरणें निकलेगी और मार्ग में रुकावट डालने वाली वस्तुओं से टकराकर पुनः उपकरण में लौट आयेंगी। लौटी हुई किरण द्वारा रुकावट डालने वाली वस्तुओं का ज्ञान थपकी द्वारा अंधे की हथेली पर आयेगा, जिससे वह जान सके कि उधर जाना ठीक नहीं।
आधुनिक विज्ञान ने प्रकाश को पदार्थ के साथ भारवान भी स्वीकार किया है। प्रकाश विशेषज्ञों का कथन है “सूर्य के प्रकाश विकिरण का एक निश्चित वजन होता है, जिसे आज के वैज्ञानिकों ने ठीक तरह से नाप लिया है। प्रत्यक्ष में यह वजन बहुत कम होता है। पूरी एक शताब्दि में पृथ्वी के एक मील के घेरे में सूर्य के प्रकाश का जो चाप पड़ता है, उसका वजन एक सेकण्ड के पचासवें भाग में होने वाली मूसलाधार वर्षा के चाप के बराबर है। यह वजन इतना कम इसलिये लगता है कि विराट् विश्व में एक मील का क्षेत्र नगण्य से भी नगण्य है। यदि सूर्य के प्रकाश के पूरे चाप का वजन लिया जाय तो वह प्रति मिनिट 25,00,00,000 टन निकलता है। यह एक मिनिट का हिसाब है। घण्टा, दिन, मास, वर्ष, सैकड़ों, हजारों, लाखों, करोड़ों, अरबों वर्षों का हिसाब लगाइये, तब पता चलेगा कि प्रकाश विकिरण के चाप का वजन क्या महत्व रखता है । '
विज्ञान द्वारा पुष्ट जैन दर्शन में स्वीकृत प्रकाश भारवान और पुद्गल है।
पुद्गल के छः भेदः - नियमसार में कुंदकुंद ने एवं गोम्मटसार के जीवकाण्ड में पुद्गल के छः भेद बताये हैं- अतिस्थूल, स्थूल, स्थूलसूक्ष्म, सूक्ष्मस्थूल, सूक्ष्म और अति सूक्ष्म । '
( 1 ) अतिस्थूलः - जो स्कंध टूट कर पुनः जुड़ नहीं सके वे अतिस्थूल हैं
1. नवनीत दिसम्बर 1955 पृ. 29. 2. नियमसार गा. 21
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