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जिस अंश में नाश है और जिस अंश में उत्पाद है वे दो अंश एक साथ प्रवृत नहीं हो सकते। अत: उत्पाद, व्यय का ऐक्य संभव नहीं है तथा नष्ट अंश के सर्वथा समाप्त होने पर और उत्पन्न होने वाले अंश का अपने स्वरूप को प्राप्त न होने से नाश और उत्पाद की एकता में प्रवर्तमान ध्रौव्य कहाँ से आयेगा? ऐसा होने पर त्रिलक्षणात्मकता नहीं रहेगी। __अतः इन दूषणों के परिहार के लिये वृत्तिमान स्वीकार करना अनिवार्य है और वह वृत्तिमान प्रदेश ही है क्योंकि जो अप्रदेश, है उनमें उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य नहीं हो सकता।'
__ अतः हमें काल को एक प्रदेशी के रूप में तो स्वीकार करना ही है क्योंकि प्रदेश रहित द्रव्य तो शून्य होता है।
काल अनंत समययुक्त है:-काल को अनंतसमय युक्त बताया है। काल अनंतसमय वाला किस अपेक्षा से है इसे पूज्यपाद ने इस प्रकार स्पष्ट किया है - वर्तमान काल तो यद्यपि एक समय वाला है, परंतु अतीत और अनागत तो अनंत समय वाला है। अतः अतीत और अनागत की अपेक्षा काल अनंत समययुक्त और वर्तमान की अपेक्षा एक समययुक्त है।'
काल के प्रकार:-काल के भेद की चर्चा भगवती सूत्र में इस प्रकार उपलब्ध होती है। जब भगवान से यह प्रश्न पूछा कि काल कितने प्रकार का है? सुदर्शन की इस शंका का भगवान ने काल के निम्न के चार भेद बताते हुए समाधान किया
(1) प्रमाण काल
(2) यथायुर्निवृत्ति काल (3) मरणकाल (4) और अद्धाकाल
1. प्र. सा. ता. पृ. 144 2. प्र.सा. 144 3. त. सू. 5.40 4. स. सि. 5.40. 604 5. भगवती 11.11.77
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