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________________ ? की किरण के रूप में था । यदि प्रकाश सचमुच ईथर में फैलता है तो इसकी गति पर पृथ्वी की गति के कारण उत्पन्न ईथर की धारा का प्रभाव पड़ना चाहिये। विशेष तौर पर पृथ्वी की गति की दिशा में फैंकी गयी प्रकाश किरण में ईथर की धारा से उसी तरह हल्की बाधा पहुँचनी चाहिये जैसी बाधा का सामना एक तैराक को धारा के विपरीत तैरते समय करना पड़ता है। इसमें अंतर बहुत थोड़ा होगा क्योंकि प्रकाश का वेग एक सेकण्ड में 1,86,284 मील है जबकि सूर्य के चारों ओर अपनी धुरी पर पृथ्वी का वेग केवल बीस मील प्रतिसेकण्ड होता है। अतएव ईथर धारा को विपरीत दिशा में फेंके जाने पर प्रकाश किरण की गति 1,86,264 मील होनी चाहिए और सीधी दिशा में फेंकी जाय तो 1,86,304 मील। इन विचारों को मस्तिष्क में रखकर माइकेलसन और मोरले ने एक यंत्र का निर्माण किया। इस यंत्र की सूक्ष्मदर्शिता इस हद तक पहुँची हुई थी कि वह प्रकाश के तीव्र वेग में प्रति सैकण्ड एक-एक मील के अंतर को भी अंकित कर लेता था। इस यंत्र को उन्होंने व्यतिकरण मापक (Interferometer) नाम दिया। कुछ दर्पण इस तरह लगाये हुए थे कि एक प्रकाश किरण को दो भागों में बांटा जा सकता था और एक ही साथ दो दिशा में उन्हें फेंका जा सकता था । यह सारा परीक्षण इतनी सावधानी से आयोजित किया कि संदेह की कोई गुंजाइश ही नहीं थी। इसका निष्कर्ष सरल भाषा में यह रहा कि प्रकाश किरणों के वेग में चाहे वे फेंकी गयी हो, कोई अंतर नहीं पड़ता।' आइंस्टीन के अनुसारः - इस निष्कर्ष से वैज्ञानिक जगत में हलचल प्रारंभ हो गयी क्योंकि इस निष्कर्ष से भी अधिक मान्य कोपरनिकस सिद्धांत को, जिसमें यह सिद्ध किया था कि “पृथ्वी स्थिर नहीं, गतिशील हैं" को छोडे या ईथर सिद्धांत को । बहुत से भौतिक विज्ञान वेत्ताओं को यह लगा कि यह विश्वास करना अधिक आसान है कि पृथ्वी स्थिर है बनिस्पत इसके कि तरंगे, प्रकाश तरंगे, विद्युत चुंबकीय तरंगे बिना किसी सहारे के अस्तित्व में रह सकती हैं। इन्हीं विभिन्न मतधाराओं के कारण पच्चीस वर्ष पर्यंत एक मत नहीं बन पाया। नयी कल्पनाएँ हुई, परीक्षण हुए, परंतु निष्कर्ष यही रहा कि "ईथर" में पृथ्वी 1. जैन दर्शन और अनेकांत: युवाचार्य महाप्रज्ञ पृ. 25-26 141 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002592
Book TitleDravyavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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