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________________ हो तो शाश्वत-उच्छेद, भव्य-अभव्य, शून्य अशून्य और विज्ञान अविज्ञान भावों का अभाव हो जायेगा, जो अनुचित हैं।'' उत्तराध्ययन के अनुसार सिद्धात्मा के शरीर की अवगाहना अंतिम भव में जो शरीर की ऊँचाई थी, उससे तृतीय भाग हीन होती है। सिद्धों के अंतिम शरीर से कुछ कम होने का कारण यह है कि चरम शरीर के नाक, कान, नाखुन आदि खोखले होते हैं। शरीर के कुछ खोखले भागों में आत्मप्रदेश नहीं होते। मुक्तात्मा छिद्ररहित होने के कारण पहले शरीर से कुछ कम, मोमरहित सांसे के बीच आकार की तरह अथवा छाया के प्रतिबिम्ब के आकार वाली होती है।' _ सिद्ध बनने के पश्चात् उनमें पुनः संसार या कर्मबंध की संभावना नहीं होती, क्योंकि बंधन रूप कार्य का सर्वथा उच्छेद हो जाता है। कारण समाप्त होने के कारण कार्य हो तो जीव का मोक्ष नहीं हो सकता। भगवती में भी इसी प्रकार की चर्चा है जिसने संसार का निरोध किया है, वह पुनः मनुष्यभव की धारण नहीं करता।' सिद्धों के अवगाहन शक्ति होती है। अल्प अवगाह में भी अनेक सिद्धों का अवगाह हो जाता है। जब मूर्तिमान दीपकों का भी अल्पाकाश में अविरोधी अवगाह देखा गया है, तब सिद्धों के अमूर्त होने के कारण विरोध का प्रश्न ही नहीं है। संसारी सुख सांत तथा उतार-चढ़ाव वाला है, परन्तु सिद्धात्मा का सुख परम अनंत हैं।' संपूर्ण कर्म क्षय होने पर ऊर्ध्वगमन स्वभाव के कारण मुक्त जीव ऊर्ध्वगमन करता है।' उमास्वाति ने ऊर्ध्वगमन के कारण बताये हैं-पूर्व के संस्कार से, कर्म के संगरहित हो जाने से, बंधन के टूटने से, और ऊर्ध्वगमन का स्वभाव होने के कारण मुक्त जीव ऊर्ध्वगमन ही करते हैं।' 1. प. का. गा. 46. 2. उत्तराध्ययन 36.64. 3. द. द्र. सं. टीका 51 पृ. 106, 4. तत्वार्थ रा.वा. 10.4.4.642. 5. भगवती 2. 1.9 (2) 6. त. रा. वा. 10.4.9.11 पृ. 643. 7. न. सू. 10.5 8. त. सू. 10.6. 132 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002592
Book TitleDravyavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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