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केवली और अयोगीकेवली।' (1) मिथ्यात्वः-मिथ्यात्व प्रकृति के उदय से तत्त्वार्थ के विपरीत श्रद्धान को
मिथ्यात्व कहते हैं। इसके एकांत, विपरीत, विनय, संशयित और अज्ञान पाँच भेद है।
(3) मिश
(2) सासादनः-उपशम सम्यक्त्व के अन्तर्मुहर्तमात्र काल में जब जघन्य एक
समय तथा उत्कृष्ट छ: आवली प्रमाण काल शेष रहे, उतने काल में अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ में से किसी के उदय से सम्यक्त्व की विराधना होने पर सम्यग दर्शन गुण की जो अव्यक्त अतत्वश्रद्धारूप परिणति होती है, उनको सासादन गुणस्थान कहते हैं। मिश्र गुणस्थानः-जिस प्रकार दही और गुड को अच्छी तरह मिलाने पर न उसका स्वाद खट्टा होता है न मीठा, अपितु मिश्रित होता है, उसी प्रकार मिश्र में सम्यक्त्व मिथ्यात्व का मिश्रित परिणाम होता है और एक ही जीव में एक साथ दोनों संभव भी हैं, जैसे एक ही व्यक्ति एक का मित्र है, एक का अमित्र; वैसे ही एक ही व्यक्ति सर्वज्ञप्ररूपित वचनों में एवं असर्वज्ञकथित सिद्धांतों में एक साथ श्रद्धान रखता है।
इस गुणस्थान में न चारित्र ग्रहण करता हैं, न श्रावकत्व। इसमें आयु बंध भी नहीं पड़ता और न इसमें व्यक्ति की मृत्यु हो सकती हैं। (4) अविरत सम्यग्दृष्टि:-इस गुणस्थान में जीव की सम्यक्दृष्टि होते हुए
भी जीव व्रतधारी नहीं बन सकता। यह श्रद्धान (सर्वज्ञ प्ररूपित वाणी
में) अवश्य रखता है, परंतु प्रवृत्ति नहीं कर सकता।' (5) देशविरत गुणस्थानः-इस गुणस्थान में प्रत्याख्यानावरण कषाय का उदय
होने के कारण पूर्ण संयम नहीं, परंतु अप्रत्याख्यानावरण कषाय न होने
से देशविरत (आंशिक व्रत) ले सकता है।' 1. गोम्मटसार (जीवकाण्ड) गा. 9.10 तथा द्वितीय कर्मग्रन्थ गा.2. 2. गोम्मटसार (जीवकाण्ड) गा. 15.16.17. 3. गोम्मटसार (जीवकाण्ड) 21,22. 4. बही गा. 23.24. 5. गोम्मटसार (जीवकाण्ड) 29. 6. वही 30.
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