SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लेश्या भावना विशेष को कहते हैं। नैरयिकों में कृष्ण लेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या होती हैं।' तिर्यंच योनि में छहों लेश्याएँ होती हैं। पृथ्वीकाय, अप्काय एवं वनस्पति काय में कृष्ण, नील, कापोत और तेजोलेश्या होती है!' बेइन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, तेउकाय और वायुकाय में कृष्ण, नील और कापोत लेश्या पायी जा सकती है! तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों में छहों लेश्या पायी जाती है।' संमूच्छिम तिर्यंच पंचेन्द्रिय में कृष्ण, नील और कापोत लेश्या पायी जाती हैं। गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रिय में कृष्ण से शुक्ललेश्या पर्यंत छहों लेश्याएँ पायी जाती हैं। संमूच्छिम मनुष्य में कृष्ण, नील, कापोत, ये तीन' और गर्भज मनुष्य में छहों लेश्या पायी जाती है!' भुवनवासी निकाय के देवों में कृष्ण, नील, कापोत और तेजोलेश्या, व्यंतर देवों में भी ये चार, ज्योतिषी देवों में मात्र तेजोलेश्या और वैमानिक देवों में तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ल लेश्या पायी जाती हैं। अन्य सभी स्थानों पर पुंल्लिग और स्त्रीलिंग में समान लेश्या हैं पर वैमानिक देवियां इसका अपवाद है। उनमें मात्र तेजोलेश्या ही पायी जाती है। ये लेश्याएँ सभी में संख्यानुसार होना अनिवार्य नहीं हैं। जीवों के अपनेअपने पुरूषार्थ की अपेक्षा उस-उस लेश्या तक पहुँचने की क्षमता हो सकती हैं। कृष्णलेश्या की अधिकता वाला अत्यंत रौद्र, मत्सर, नित्यक्रोधी, धर्म रहित, दयाहीन और गहरी दुश्मनी वाला होता है! नीललेश्या वाला चिंता, आकुलता से पीडित, परनिंदा, स्वप्रशंसा और रूष्ट स्वभाव वाला होता है। 1. प्रज्ञापना 17.1159-61. 2. प्रज्ञापना 17.1162. 3. प्रज्ञापना 17.1163. 4. प्रज्ञापना 17.1163. (2) 5. प्रजापना 17.1163 (3) 1164 (1) 6. प्रज्ञापना 17.1164 (2) 7. प्रज्ञापना 17.1164 (2) 3 प्रज्ञापना 17.1164 (3) 8. प्रज्ञापना 17.1166-69. 111 ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002592
Book TitleDravyavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy