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________________ सामायिक:-राग-द्वेष की विषमता को मिटाकर शत्रु मित्र के प्रति समभाव को धारण करना सामायिक है। इससे ज्ञान, ध्यान और संयम का लाभ होता है। इसकी जघन्य अवधि 48 मिनट एवं उत्कृष्ट अवधि छः माह की होती है।' सामायिक दो प्रकार की है- नियतकाल सामायिक स्वाध्याय आदि और ईर्यापथ का विवेक अनियतकाल सामायिक है।' छेदोपस्थापनीयः-यह संयमधारी साधु साध्वी में पाया जाता है। छोटी दीक्षा के पर्याय का छेद करके बड़ी दीक्षा के अनुष्ठान को छेदोपस्थापनीय कहते हैं।' अथवा विकल्पों की निवृत्ति का नाम छेदोपस्थापनीय चारित्र है।' परिहारविशुद्धिः-प्राणीवध से निवृत्ति को परिहार कहते हैं। इससे युक्त शुद्धि जिस चारित्र में होती है, वह परिहार विशुद्धि चारित्र है अथवा विशिष्ट श्रुतपूर्वधारी साधुसंघ से अपने को अलग करके आत्मा की विशुद्धि के लिए जिस अनुष्ठान को करता है, वह परिहार विशुद्धि चारित्र है। सूक्ष्म संपरायः-जिस चारित्र में कषाय अति अल्प या सूक्ष्म हो जाय वह सूक्ष्म संपराय चारित्र है।' यथाख्यात चारित्रः-मोहनीय कर्म के उपशम या क्षय से जैसा आत्मा का स्वभाव है, उस अवस्थास्वरूप अपेक्षा लक्षण जो चारित्र होता है उसे यथाख्यात चारित्र कहते हैं। लेश्या और जीवः-लेश्या छह प्रकार की होती है-कृष्ण,नील, कापोत, तेजो, पद्म और शुक्ल।' लेश्या की परिभाषा है- कृष्ण लेश्या आदि के योग से होने वाला आत्मा का परिणाम लेश्या कहलाता है! जैसे स्फटिक मणि के पास किसी वर्ण का पदार्थ रख दिया तो मणि उसी वर्ण वाली लगेगी। उसी प्रकार आत्मा जिस लेश्या के परिणाम वाली होती है, उसी लेश्यायुक्त कहलाएगी। 1. पैंतीस बोल विवरण पृ. 51,52. 2. स.सि. 9.8 854. 3. पैतीस बोल विवरण पृ. 52. 4. स.सि. 9.8.854. 5. स.सि. 9.8.854. 6. पैतीस बोल विवरण पृ. 52. 7. स.सि. 9.8.854. 8. वही 9. ठाणांग 6.47 10. प्रज्ञापना सूत्र मलयगिरि वृत्ति पत्रांक 329. 110 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002592
Book TitleDravyavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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