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__ औदारिक शरीरः-विशेष शरीर नाम कर्म के उदय से प्राप्त होकर गलते हैं उन्हें शरीर कहते हैं। ये औदारिक आदि प्रकृति विशेष के उदय से प्राप्त होता है। इसका गलना, सड़ना और विध्वंस होना स्वभाव है।'
वैक्रिय शरीर:-अणिमा आदि आठ, ऐश्वर्य-संबंध से एक, अनेक, छोटा, बड़ा आदि नाना प्रकार के शरीर की संरचना करना विक्रिया है। यह विक्रिया जिस शरीर का प्रयोजन है, वह वैक्रिय है।
आहारक शरीर :-सूक्ष्म पदार्थ का ज्ञान करने के लिए या असंयम को दूर करने की इच्छा से प्रमत्त संयत जिस शरीर की रचना करता है, वह आहारक शरीर है।
तैजस शरीर :-जो दीप्ति का कारण है या तेज में उत्पन्न होता है उसे तैजस कहते हैं। ग्रहण किए हुए आहार को यही शरीर पचाता हैं।'
कार्मण शरीर :-कर्मों का कार्य कार्मण शरीर है। यद्यपि सारे शरीर कर्म के निमित्त से उत्पन्न होते हैं, तो भी रूढि से विशिष्ट शरीर को कार्मण शरीर कहते हैं।'
किसे कितने शरीर होते हैं:-नैरयिकों को एवं देवगति में देवों को वैक्रिय, तेजस और कार्मण शरीर होते हैं। पृथ्वी, अप्, तेउ, वनस्पति, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय को औदारिक, वैक्रिय, तेजस और कार्मण शरीर प्राप्त होते हैं। वायु काय एवं तिर्यंच पंचेद्रिय को औदारिक, वैक्रिय, तेजस और कार्मण शरीर प्राप्त होते हैं। मनुष्य को पाँचों शरीर प्राप्त हो सकते हैं।'
__ आत्मा और चारित्रः-चारित्र परिणाम पाँच प्रकार का होता हैं- (1) सामायिक चारित्र (2) छेदोपस्थापनीय चारित्र (3) परिहारविशुद्धि चारित्र (4) सूक्ष्म संपराय चारित्र (5) यथाख्यात चारित्रा' 1. पैंतीस बोल विवरण पृ. 10. 2. स.सि. 2.36.331. 3. स.सि. 2.36.331. 4. स.सि. 2.36.331. 5. पतीस बोल विवरण पृ. 11. 6. स.सि. 2.36.331. 7. प्रज्ञापना 12.902-7. 8. प्रज्ञापना 13.936 त.सू. 9.8 तथा ठाणांग 5.139.
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