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कोश के क्षेत्र में धनञ्जय (११वीं शती) की धनञ्जयनाममाला और अनेकार्थ नाममाला, हेमचन्द्र की अभिधान चिन्तामणि नाममाला और निघण्टु शेष तथा उन पर अनेक वृत्तियाँ, धरसेन (१३-१४वीं शती) का विश्वलोचन कोश आदि ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं। हेमचन्द्र का काव्यानुशासन, वाग्भट का वाग्भटालंकार (१२वीं शती), नरेन्द्रप्रभसूरि का अलङ्कार महोदधि (वि०सं० १२८०), विनयचन्द्रसूरि की काव्य शिक्षा (१३वीं शती) आदि अनेक अलङ्कारशास्त्र उल्लेखनीय हैं। काव्यकल्पलता, नाट्यदर्पण, अलङ्कार चिन्तामणि, अलङ्कारशास्त्र, काव्यालङ्कार सार आदि और भी प्रसिद्ध अलङ्कार ग्रन्थ हैं।
ज्योतिष के क्षेत्र में प्रश्नपद्धति, भुवनदीपक, आरम्भसिद्धि, भद्रबाहुसंहिता केवलज्ञानहोरा, यन्त्रराज, त्रैलोक्यप्रकाश, होरामकरन्द, शकुनशास्त्र, मेघमाला, हस्तकाण्ड, नाड़ीविज्ञान, स्वप्नशास्त्र, केवलज्ञान प्रश्न चूड़ामणि, सामुद्रिकशास्त्र, आदि शताधिक ग्रन्थ हैं। इसी प्रकार आयुर्वेद के क्षेत्र में अष्टाङ्गसंग्रह, पुष्पायुर्वेद, मदन काम रत्न, नाड़ी परीक्षा, अष्टाङ्गहृदय वृत्ति, योग चिन्तामणि, आयुर्वेद महोदधि, रस चिन्तामणि, कल्याण कारक, ज्वर पराजय आदि ग्रन्थ अत्यन्त उपयोगी हैं। सोमदेव का नीतिवाक्यामृत, हंसदेव का मृगपक्षीशास्त्र और दुर्लभराज का हस्ती परीक्षा नामक ग्रन्थ भी संस्कृत जैनसाहित्य के अमूल्य मणि है। इन ग्रन्थों से जैनाचार्यों का वैदूष्य देखा जा सकता है।
अपभ्रंश साहित्य अपभ्रंश साहित्य में जनजीवन में प्रचलित कथाओं का प्रयोग विशेष रूप से किया गया है। उसमें लोकोपयोगी साहित्य के सृजन पर अधिक ध्यान दिया गया है। पुराण, चरित, कथा, रासा, फागु इत्यादि अनेक विधाओं पर जैनाचार्यों ने अपनी स्फुट रचनायें लिखी हैं जिनका संक्षिप्त उल्लेख हम नीचे कर
अपभ्रंश में प्राचीनतम ‘पुराण' साहित्य में स्वयम्भू (७वीं-८वीं शती) का पउमचरिउ सर्वप्रथम उल्लेखनीय है। उनका रिट्ठणेमिचरिउ (हरिवंशपुराण) भी उपलब्ध है। हरिवंशपुराण नाम की अन्य कृतियां भी मिलती हैं जो धवल (१०-११वीं शती) और यश:कीर्ति (१५वीं शती) द्वारा लिखी गई हैं। इनके अतिरिक्त पुष्पदन्त (१०वीं शती) के तिसट्ठिमहापुरिसगुणालंकारु (महापुराण), जसहरचरिउ और णायकुमारचरिउ, धनपाल धक्कड़ का भविसयत्तकहा (१०वीं शती), कनकामर का करकण्डचरिउ (१०वीं शती), धाहिल का पउमसिरिचरिउ (१०वीं शती), हरिभद्र का सणत्कुमारचरिउ (१०वीं शती), वीर का जम्बूसामिचरिउ (११वीं
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