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________________ कहे जा सकते हैं। सन्देश काव्यों में पार्श्वभ्युदय (जिनसेनाचार्य, ८वीं शती) नेमिदूत (विक्रम १४वीं शती), जैनमेघदूत (मेरुतुंग, १४वीं शती), शीलदूत (चरित्र सुन्दरगणि, वि०सं० १४८४), पवनदूत (वादिचन्द्र, वि०सं० १७२७), चेतोदूत, मेघदूत समस्यालेख, इन्द्रदूत, चन्द्रदूत आदि काव्यों में गीतितत्त्व वस्तुकथा का आश्रय लेकर सुन्दर ढंग से सँजोये गये हैं। जैनस्तोत्र साहित्य तो और भी समृद्ध हैं उसके भक्तामरस्तोत्र कल्याणमन्दिर स्तोत्र, जिनसहस्रनाम तो अत्यन्त प्रसिद्ध हैं। नाटक के क्षेत्र में भी जैनाचार्यों का कम योगदान नहीं। उन्होंने पौराणिक, ऐतिहासिक, रूपक और काल्पनिक विद्याओं में नाटकों की रचना की है। रामचन्द्र (१३वीं शती) के सत्य हरिचन्द्र, नलविलास, मल्लिकामकरन्द, कौमिदी मित्राणंद, रघुविलास, निर्भयभीम व्यायोग, रोहिणी मृगांक, राघवाभ्युदय, यादवाभ्युदय और वनमाला, देवचन्द्र का चन्द्रविजय प्रकरण विजयपाल का द्रौपदी स्वयंवर, रामभद्र का प्रबुद्धरोहिणेय, यशपाल का मोहराज पराजय (१३वीं शती) यशचन्द्र का मुद्रित कुमुदचन्द्र, हस्तिमल्ल(१३-१४वीं शती) के अंजना-पवनंजय, सुभद्रानाटिका, विक्रान्तकौरव, मैथिलीकल्याण, वादिचन्द्र का ज्ञान सूर्योदय(वि०सं० १६४८) आदि दृश्यकाव्य एक ओर जहाँ नाटकीय तत्त्वों से भरे हुए हैं वहीं उनमें जैन तत्त्वों का भी पर्याप्त अंकन है। इन सभी काव्यों में यद्यपि शृङ्गार आदि रसों का यथास्थान प्रयोग हुआ है पर प्रमुख रूप से शान्त रस ने स्थान लिया है। जयसिंह सूरिकृत हम्मीरमर्दन, रत्नशेखरसूरिकृत प्रबोधचन्द्रोदय, मेघप्रभाचार्यकृत मदन पराजय भी उत्तम कोटि की नाट्य कृतियाँ हैं। लाक्षणिक-साहित्य लाक्षणिक साहित्य के अन्तर्गत व्याकरण, कोश, अलङ्कार, छन्द, संगीत, कला, गणित, ज्योतिष, आयुर्वेद, शिल्प इत्यादि विधायें सम्मिलित होती हैं। जैनाचार्यों ने इन विधाओं को भी उपेक्षित नहीं होने दिया। व्याकरण के क्षेत्र में देवनन्दि (६वीं शती) का जैनेन्द्र व्याकरण और उस पर लिखी अनेक वृत्तियाँ पाल्यकीर्ति (९वीं शती) का शाकटायन व्याकरण और उन पर लिखी वृत्तियाँ, हेमचन्द्र का सिद्धहेमचन्द्र शब्दानुशासन और उस पर लिखी अनेक वृत्तियाँ सर्वविदित हैं। उन्होंने जैनेतर सम्प्रदाय के आचार्यों द्वारा लिखित व्याकरण ग्रन्थों पर बीसों टीकायें लिखी हैं जो अपने आप में महत्त्वपूर्ण हैं। गुणनन्दी, सोमदेव, अभयनन्दी, पाल्यकीर्ति, गुणरत्न, भावचन्द्र विद्य आदि आचार्य इस क्षेत्र के प्रधान पण्डित ___Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002591
Book TitleBharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Aavdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size4 MB
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