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________________ ३७८० ५००० ९५०० ४६०० ४१५०० " सप्ततिकावृत्ति बृहत्संग्रहणीवृत्ति बृहत्क्षेत्रसमासवृत्ति मलयगिरिशब्दानुशासन ५००० मलधारी हेमचन्द्र(१२वीं शती)आवश्यकवृत्तिप्रदेश व्याख्या अनुयोगद्वारवृत्ति ५९०० " विशेषावश्यक भाष्य-वृहत्वृत्ति २८००० " शतक विवरण उपदेश माला सूत्र उपदेशमालावृत्ति जीवसमासविवरण भवभावना सूत्र भवभावना विवरण नन्दि टिप्पण नेमिचन्द्र (१०७२ ई.) उत्तराध्ययन सुखबोधोटीका १२००० श्रीचन्द्रसूरि (१२वीं शती) निशीथचूर्णि दुर्गपदव्याख्या निरयावलिकावृत्ति ६०० " जीतकल्पवृहच्चूर्णि क्षेमकीर्ति (१२७५ ई.) बृहत्कल्पवृत्ति ४२६०० ". माणिक्यशेखरसूरि(१५वींशती) आवश्यकनियुक्तिदीपिका महेश्वरसूरि (१५वीं शती) आचारांगदीपिका विमलसूरि (१६३२ ई.) उत्तराध्ययनव्याख्या १६२५५ समयसुन्दरसुरि (१६३४ ई.) दशवैकालिकदीपिका ३४५० ज्ञानविमलसूरि (१८वीं शती) प्रश्नव्याकरण वृत्ति संघविजयगणि (१६१७ ई.) कल्पसूत्र-कल्पप्रदीपिका ३२५० विनयविजय उपाध्याय (१६३९ई.) कल्पसूत्र सुबोधिका ५४०० समयसुन्दरगणि (१७वीं शती) कल्पसूत्र-कल्पलता शान्तिसागरगणि (१६५० ई.) कल्पसूत्रकौमुदी ३७०७ ११२० " ७५०० ७७०० " Jain Education International 2010 04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002591
Book TitleBharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Aavdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size4 MB
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