SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 74
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पउमचरिय (८३५१ गा.) पौराणिक महाकाव्यों में प्राचीनतम कृति है जिसकी रचना विमलसरि ने वि.सं. ५३० में की। कवि ने यहाँ रामचरित को यथार्थवादिता की भूमिका पर खड़े होकर रचा है। उसमें उन्होंने अतार्किक और अनर्गल बातों को स्थान नहीं दिया। सभी प्रकार के गुण, अलंकार, रस और छन्दों का भी उपयोग किया गया है। गुप्त-वाकाटक युग की संस्कृति भी इसमें पर्याप्त मिलती है। महाराष्ट्री प्राकृत का परिमार्जित रूप यहाँ विद्यमान है। कहीं-कहीं अपभ्रंश का भी प्रभाव दिखाई देता है। इसी तरह भुवनतुंगसूरि का सीताचरित (४६५ गा.) भी उल्लेखनीय है। सम्भवत: शीलांकाचार्य से भिन्न शीलाचार्य (वि.सं. ९२५) का चउप्पन्नमहापुरिसचरिय (१०८०० श्लोक प्रमाण), भद्रेश्वरसूरि (१२वीं शती), तथा आम्रकवि (१०वीं शती) का चउप्पन्नमहापुरिसचरिय (१०३ अधिकार), सोमप्रभाचार्य (सं. १९९९) का सुमईनाहचरिय (९६२१ श्लोक प्रमाण), लक्ष्मणगणि (सं. ११९९) का सुपासनाहचरिय (८००० गा.), नेमिचन्द्रसूरि (सं. १२१६) का सुपासनाहचरिय (१२०० गा.), श्रीचन्द्रसूरि (सं. ११९१) का मुनिसुब्बयसामिचरिय (१०९९४ गा.) तथा गुणचन्द्रसूरि (सं. ११३९) और नेमिचन्द्रसूरि (१२वीं शती) के महावीरचरिय (क्रमश: १२०२५ और २३८५ श्लोक प्रमाण) काव्य विशेष उल्लेखनीय हैं। ये ग्रन्थ प्रायः पद्यबद्ध हैं। कथावस्तु की सजीवता व चरित्र चित्रण की मार्मिकता यहाँ स्पष्टत: दिखाई देती है। द्वादश चक्रवर्तियों तथा अन्य शलाका पुरुषों पर भी प्राकृत रचनायें उपलब्ध हैं। श्रीचन्द्रसूरि (सं० १२१४) का सणतकुमारचरिय (८१२७ श्लोक प्रमाण), संघदासगणि और धर्मदासगणि (लगभग ५वीं शती) का वसुदेवहिण्डी (दो खण्ड) तथा गुणपालमुनि का जम्बूचरिय (१६ उद्देश) इस सन्दर्भ में उल्लेखनीय ग्रन्थ हैं। इन काव्यों में जैनधर्म, इतिहास और संस्कृति पर प्रकाश डालने वाले अनेक स्थल हैं। । भगवान् महावीर के बाद होने वाले अन्य आचार्यों और साधकों पर भी प्राकृत काव्य रचे गये हैं। तिलकसूरि (सं. १२६१) का प्रत्येकबुद्धचरित (६०५० श्लोक प्रमाण) उनमें प्रमुख है। इसके अतिरिक्त कुछ और पौराणिक काव्य मिलते हैं जो आचार्यों के चरित पर आधारित हैं जैसे हेमचन्द्र आदि की कालकाचार्य कथा। जैनाचार्यों ने ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर कतिपय प्राकृत काव्य भी Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002591
Book TitleBharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Aavdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy