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और मध्यकालीन प्राकृत से ही अपभ्रंश तथा अपभ्रंश से हिन्दी, मराठी, बंगला, गुजराती आदि आधुनिक भाषाओं का जन्म हुआ। इस प्रकार बोलियों में साहित्य-सृजन होता गया और वे भाषा का रूप लेती गईं। प्राकृत का विकास अवरुद्ध नहीं हुआ, बल्कि उनसे निरन्तर नई-नई भाषाओं का जन्म होता गया। संस्कृत भाषा भी इन प्राकृत बोलियों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी। प्राकृत : जनभाषा का रूप
सदियों से प्राकृत भाषा की उत्पत्ति के सन्दर्भ में विवाद के स्वर गूंजते रहे हैं। प्राकृत और संस्कृत इन दोनों भाषाओं में प्राचीनतर तथा मूल भाषा कौन-सी है? इस प्रश्न के समाधान में दो पक्ष प्रस्तुत किये गये हैं। प्रथम पक्ष का कथन है कि प्राकृत की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है तथा दूसरा पक्ष उसका सम्बन्ध किसी प्राचीन जनभाषा से स्थापित करता है। प्राकृत व्याकरणशास्त्र में दोनों पक्षों का विश्लेषण इस प्रकार मिलता है१. प्रथम पक्ष
i) प्रकृतिः संस्कृतम्। तत्र भवं तत आगतं वा प्राकृतम्- हेमचन्द्र। ii) प्रकृतिः संस्कृतम्, तत्र भवं प्राकृतम् उच्यते – मार्कण्डेय। iii) प्रकृतेः संस्कृतायाः तु विकृति: प्राकृति: मता- नरसिंह। iv) प्राकृतस्य तु सर्वमेव संस्कृतं योनि: - वासुदेव। v) प्राकृतेः आगतम् प्राकृतम्। प्रकृतिः संस्कृतम् -- धनिक। vi) संस्कृतात् प्राकृतं श्रेष्ठं ततोऽपभ्रंश भाषणम् -- शंकर। vii) प्रकृतेः संस्कृताद् आगतं प्राकृतम् - सिंहदेवगणिन्। viii) प्रकृतिः संस्कृतम्, तत्र भवत्वात् प्राकृतं स्मृतम् - पीटर्सन।
(प्राकृतचन्द्रिका) २. द्वितीय पक्ष i) 'प्राकृतेति' सकलजगज्जन्तूनां व्याकरणादिभिरनाहितसंस्कार: सहजोवचनव्यापार:
प्रकृतिः, तत्र भवं सैव वा प्राकृतम्। 'आरिसवयवो सिद्धं देवाणं अद्धमागहा वाणी' इत्यादि- वचनात् वा प्राक् पूर्व कृतं प्राक्कृतं बालमहिलादिसुबोधं सकलभाषानिबन्धभूतं वचनमुच्यते। मेघनिर्मुक्तिजलमिवैकस्वरूपं तदेव च देशविशेषात् संस्कारकरणाच्च समोसादितविशेषं सत् संस्कृताधुत्तरविभेदानाप्नोति।
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