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________________ आत्मवाद / ९१ करती है या पुद्गल करता है? चिन्तन न आत्मा करती है और न पुद्गल करता है। दोनों का योग करता है । ध्यान की अवस्था में कहा जाता है—चिन्तन को बन्द कर दो, सोचो मत, निर्विकल्प और निर्विचार रहो। अगर आत्मा का काम सोचना होता तो कभी रोका नहीं जा सकता। साधना उसके प्रतिकूल होती। साधना में निर्देश दिया जाता है—आहार का संयम करो, मत खाओ, उपवास करो। हम जब आत्मा की साधना में जाते है तब खाने का अभ्यास करना बहुत जरूरी नहीं है। बोलना आत्मा का स्वरूप नहीं है इसलिए जब आत्मा की साधना करनी है तो मौन का अभ्यास बहुत आवश्यक है। सोचना आत्मा का स्वभाव नहीं है। इसलिए आत्मा की साधना करते समय अचिन्तन या निर्विचार होना बहुत आवश्यक है। साधना का सूत्र श्वास कौन लेता है ? आत्मा लेती है या पुद्गल लेता है ? आत्मा भी विश्वास नहीं लेती और पुद्गल भी श्वास नहीं लेता। श्वास लेता है योग । आत्मा श्वास लेती तो फिर श्वास-संयम करने की कोई आवश्यकता नहीं होती, कुंभक करने की कोई जरूरत नहीं होती। आत्मा को तो निरन्तर श्वास लेना ही होगा। वर्तमान में श्वास जीवित मनुष्य की पहचान बना हुआ है । जहां श्वास, वहां जीवन और जहां श्वास नहीं, वहां - 'वन नहीं। शरीरधारी की पहचान है श्वास। श्वास नहीं है। इसका अर्थ है-मरण । आत्मा की पहचान श्वास के साथ जुड़ी हुई नहीं है। आत्मा श्वास नहीं लेती । आत्मा अमर है, मरती नहीं। श्वास लेना आत्मा का काम नहीं है । साधना का एक सूत्र है-श्वास का संयम करना। ___ आहार का संयम, वाणी का संयम, चिंतन का संयम और श्वास का संयम-साधना के ये चार महत्त्वपूर्ण सूत्र फलित हुए आत्मा के स्वरूप के आधार पर । वर्तमान का हमारा जो व्यक्तित्व है उसके आधार पर ये फलित नहीं होते। उसके आधार पर खाना, बोलना, सोचना और श्वास लेना—ये सब अत्यन्त अनिवार्य हैं। साधना के जो सूत्र फलित हुए हैं वे शरीर मुक्त आत्मा के आधार पर फलित हुए हैं। साधना का उद्देश्य है शरीर-मुक्त होना। सारे बन्धन समाप्त हो जाएं, स्थूल शरीर भी छूट जाए, सूक्ष्म शरीर भी छूट जाए-यह साधना का लक्ष्य है। इसके आधार पर साधना के ये चार सूत्र बन जाते हैं। गहरा सम्बन्ध है तत्त्वज्ञान और आचार में दर्शन और आचार को बांटा नहीं जा सकता । तत्त्वज्ञान आचार का सूचन देता ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002589
Book TitleJain Darshan aur Anekanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2003
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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