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स्यावाद और सद्वाद / ७३ • सापेक्षता का पहला आकार-'दूध है'-यह केवल द्रव्य के आधार पर
फलित होता है। सापेक्षता का दूसरा आकार—'मिठास है', 'सफेद रंग है'-यह केवल पर्याय के आधार पर फलित होता है। सापेक्षता का तीसरा आकार—'दूध में मिठास और सफेद रंग है' यह
द्रव्य में पर्याय की अपेक्षा से फलित होता है। • सापेक्षता का चौथा आकार–'मिठास और सफेद रंग ही दूध है'-यह
पर्याय की प्रधानता और द्रव्य की गौणता से फलित होता है।। द्रव्य का अपना स्वभाव
दो द्रव्य परस्पर क्षीरनीरवत् मिल जाते हैं , फिर भी वे अपने स्वभाव को नहीं छोड़ते। इस अपेक्षा से वे शाश्वत हैं। इसी अपेक्षा के आधार पर प्रत्येक द्रव्य का स्व-द्रव्य होता है। दो द्रव्य एक क्षेत्र में रहते हुए भी एक दूसरे से भिन्न अपना अस्तित्व बनाए हुए रहते हैं । इस अपेक्षा से प्रत्येक द्रव्य का स्व-क्षेत्र होता है। द्रव्य का अतीत, वर्तमान और भविष्य के पर्यायों से सम्बन्ध होता है।
इस अपेक्षा से प्रत्येक द्रव्य का स्व-काल होता है। ) द्रव्य बदलता रहता है। इस अपेक्षा से प्रत्येक द्रव्य का स्व-भाव या
स्व-पर्याय होता है। सापेक्षता का सूत्र सापेक्षता के आधार पर द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के दो वर्ग बन जाते हैंपहला वर्ग
दूसरा वर्ग १. स्व-द्रव्य
१. पर-द्रव्य २. स्व-क्षेत्र
२. पर-क्षेत्र ३. स्व-काल
३. पर-काल ४. स्व-भाव
४. पर-भाव प्रत्येक द्रव्य में अनन्त विरोधी युगल हैं। उनके सह-अस्तित्व का ज्ञान और व्याख्या सापेक्षता के आधार पर ही की जा सकती है। एक नय से दूसरा नय भिन्न या विरोधी विचार वाला होता है। उन दोनों में सापेक्षता का सूत्र रहता है, इसलिए वे असत्य नहीं होते। वे अपने-अपने विचार का समर्थन करते हुए भी दूसरे के विचार का खंडन नहीं करते। इस सापेक्षता के आधार पर ही विरोधी विचारों का सह-अस्तित्व
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