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७० / जैन दर्शन और अनेकान्त सिद्धान्त है। प्रत्येक द्रव्य में पर्याय बदलते रहते हैं। किसी एक पर्याय के आधार पर उसका स्वरूप नहीं जाना जा सकता और न ही उसकी व्याख्या की जा सकती है । भिन्न-भिन्न देश और काल में होने वाले परिवर्तन द्रव्य की अनन्तता सूचित करते हैं, किन्तु उसके स्वरूप को अनावृत नहीं करते। उसके स्वरूप का निश्चय विशेष गुण (मौलिक गुण) के द्वारा होता है । द्रव्य (पदार्थ या वस्तु) का लक्षण है-अस्तित्व । अस्तित्व के तीन अवयव हैं-ध्रुवांश, उत्पाद और व्यय। जिसमें यह त्रयात्मक अस्तित्व नहीं होता, वह द्रव्य नहीं होता। पदार्थ का लक्षण
पदार्थ का लक्षण बताया जाता है जो ठोस होता है, जिसमें भार होता है, जिसमें आयतन होता है, वह पदार्थ होता है। वैज्ञानिकों को कुछ ऐसे कण उपलब्ध हुए हैं, जिनमें द्रव्य-भार बिल्कुल नहीं है । इन कणों को उक्त परिभाषा के आधार पर पदार्थ नहीं माना जा सकता । इसीलिए वैज्ञानिक जगत् में यदा-कदा यह स्वर सुनने को मिलता है कि पदार्थ मर गया। वास्तव में ठोस होना, भार होना-पदार्थ के लक्षण नहीं हैं। ये उसकी विशिष्ट अवस्थाएं हैं। परमाणु और पुद्गल के सूक्ष्म स्कन्ध भारशून्य होते हैं। पुद्गल स्कन्धों का जब स्थूल परिणमन होता है तब उनमें 'भार' नाम की अवस्था उत्पन्न होती है। पुद्गल के परिणमन अनेक प्रकार के होते हैं१. परमाणु
एक वर्ण, एक गंध, एक रस, दो स्पर्श । २. द्विप्रदेशी स्कन्ध
। स्यात् एक वर्ण, स्यात् दो वर्ण । स्यात् एक गंध, स्यात् दो गंध । स्यात् एक रस, स्यात् दो रस । स्यात् दो स्पर्श, स्यात् तीन स्पर्श, स्यात् चार स्पर्श । ३. त्रि-प्रदेशी स्कन्ध
स्यात् एक वर्ण, स्यात् दो वर्ण, स्यात् तीन वर्ण । स्यात् एक गंध, स्यात् दो गंध । स्यात् एक रस, स्यात् दो रस, स्यात् तीन रस । स्यात् दो स्पर्श, स्यात् तीन स्पर्श, स्यात् चार स्पर्श। ४. चतुःप्रदेशी स्कन्ध
स्यात् एक वर्ण, स्यात् दो वर्ण, स्यात् तीन वर्ण, स्यात् चार वर्ण । स्यात् एक गंध, स्यात् दो गंध । स्यात् एक रस, स्यात दो रस, स्यात् तीन रस, स्यात् चार रस ।
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