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स्याद्वाद और सद्वाद / ६९ रूप में बदलना नियति—सार्वभौम नियम है। असंख्यकाल की अवधि में उसका स्कन्ध रूप में बदलना एक संभावना है। वह जब चाहे बदल सकता है, इसके लिए कोई निश्चित नियम नहीं बनाया जा सकता । जो नियम एक परमाणु के लिए है वही नियम अनन्त परमाणुओं से बने स्कन्ध के लिए है। एक गुना काला पुद्गल कम से कम एक समय तक और अधिक से अधिक असंख्यकाल तक रह सकता है। उसके पश्चात् उसे अनन्त गुना काला होना ही होता है । यह सार्वभौम नियम है सभी वर्ण, गंध, रस और स्पर्श के परिवर्तन का। पुद्गलों की दो प्रकार की परिणतियां होती हैंसूक्ष्म और स्थूल । सूक्ष्म सदा सूक्ष्म नहीं रहता और स्थूल सदा स्थूल नहीं रहता। असंख्यकाल के पश्चात् सूक्ष्म स्थूल में और स्थूल सूक्ष्म में बदल जाता है। इस प्रकार प्रत्येक द्रव्य में होने वाला परिवर्तन नियति और संभावना ---इन दोनों से जुड़ा हुआ है । हम वर्तमान पर्याय के आधार पर किसी संभावित पर्याय को अस्वीकार न करें । इस रहस्य को 'स्यात्' शब्द के द्वारा अनावृत किया गया है। परिवर्तन का नियम
द्रव्य में कौन-सा पर्याय कब व्यक्त होगा, इसकी निश्चित घोषणा नहीं की जा सकती, इसलिए इसे अनिश्चयवाद भी कहा जा सकता है। संभावनावाद और अनिश्चयवाद-ये दोनों अनेकान्त में गर्भित हैं। 'स्यात्' शब्द से इसकी सूचना हमें उपलब्ध
है।
व्यवहार नय के नियम स्थूल नियम हैं । निश्चय नंय के नियम सूक्ष्म नियम हैं। सूक्ष्म नियमों का पता चलता है तब स्थूल नियम अविश्वसनीय बन जाते हैं। हमारा ज्ञात जगत् बहुत छोटा है, अज्ञात जगत् बहुत बड़ा है। पदार्थ में प्रतिक्षण पर्याय बदलते रहते हैं। उन बदलते हुए सभी पर्यायों और उनके परिवर्तन के सभी नियमों को हम नहीं जानते । परिवर्तन ज्ञात हो जाता है, पर उसका नियम ज्ञात नहीं होता। इसलिए जहां-जहां धुआं होता है, वहां-वहां आग होती है, ऐसी व्याप्ति सर्वत्र नहीं बनाई जा सकती। सापेक्षवाद
'स्यात्' शब्द का एक अर्थ 'अपेक्षा' है। सापेक्षवाद अनेकान्त का महत्त्वपूर्ण
१. भगवती, ५/१७२।
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