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६८ / जैन दर्शन और अनेकान्त बिछुड़ने पर नष्ट हो जाते हैं। स्वाभाविक पर्याय : सांयोगिक पर्याय
स्वाभाविक पर्याय क्षणवर्ती होता है । यह सार्वभौम नियम है । प्रत्येक द्रव्य पर यह लागू होता है। सांयोगिक पर्याय लम्बे समय तक टिकने वाली अवस्था है। उसके विषय में कोई सार्वभौम नियम नहीं बनाया जा सकता।
स्वाभाविक पर्याय अव्यक्त और सूक्ष्म होता है। सांयोगिक पर्याय व्यक्त और स्थूल होता है । यांत्रिक उपकरणों से द्रव्य के जिन पर्यायों का अध्ययन किया जा रहा है, वे सब व्यक्त और स्थूल हैं। ये सार्वभौम नियम से बंधे हुए नहीं हैं, इसलिए इनका व्यवहार एक जैसा नहीं होता। संभावनावाद का आधार
चेतन में भी अनन्त शक्ति है और अचेतन द्रव्य में भी अनन्त शक्ति है। ...क्त की दृष्टि से दोनों तुल्य हैं । शक्ति एक सामान्य गुण है, जो सब द्रव्यों में मिलता है। प्रत्येक द्रव्य का अपना एक विशेष गुण होता है। उसके आधार पर द्रव्य की मौलिकता या स्वतंत्रता स्थापित होती है। चैतन्य एक विशेष गुण है, जो पुद्गल में नहीं होता, केवल चेतन द्रव्य में ही होता है। वर्ण, गंध, रस और स्पर्श-ये पुद्गल के विशेष गुण हैं । ये केवल पुद्गल द्रव्य में ही होते हैं, चेतन में नहीं होते । गुण, द्रव्य का ध्रौव्य अंश है । वह निरन्तर द्रव्य के साथ रहता है। पर्याय उस ध्रुव अंश के साथ होने वाला परिवर्तन-चक्र है । एक परमाणु में वर्ण, गंध, रस और स्पर्श नियमित रूप से होता है, यह सार्वभौम नियम है। विभिन्न परमाणुओं से एक जैसे ही वर्ण, गंध, रस
और स्पर्श हों, यह आवश्यक नहीं है । इस सिद्धान्त से यह फलित होता है कि प्रत्येक द्रव्य सार्वभौम नियम (नियति) और परिवर्तनशील या आंशिक नियम–दोनों प्रकार के नियमों से नियमित है। यह परिवर्तनशील या आंशिक नियम ही संभावनावाद का आधार बनता है। स्यात् शब्द का अर्थ
एक परमाणु, परमाणु के रूप में कम-से-कम एक समय तक और अधिक से अधिक असंख्यकाल तक रह सकता है। असंख्यकाल के बाद परमाणु का स्कन्ध
१. भगवती, ५/१६९
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