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स्याद्वाद और सद्वाद / ६७ है। उनमें उसका एक अर्थ 'संभावना भी है । चेतन और अचेतन—दोनों की गतिशीलता के असंख्य-असंख्य नियम हैं। इन्द्रिय-चेतना की सीमा में काम करने वाले किसी भी मनुष्य को उन सब नियमों की जानकारी नहीं होती। उनमें से कुछेक नियमों की जानकारी होती है। जिन नियमों की जानकारी होती है, वह भी समग्ररूप से नहीं होती। अनेकान्त का प्रसिद्ध सूत्र है—जो एक को जान लेता है, वह सबको जान लेता है। जो सबको जान लेता है, वही एक को जान सकता है। एक परमाणु को समग्रता से जानने के लिए सब द्रव्यों को जानना जरूरी होता है। इसका कारण यह है कि सब द्रव्य परस्पर संबद्ध हैं। कोई एक द्रव्य अन्य द्रव्यों से सर्वथा भिन्न नहीं है और सर्वथा अभिन्न भी नहीं है। उन सबमें परस्पर भिन्नता भी है और अभिन्नता भी है। द्रव्यों के पारस्परिक भेद और अभेद के नियमों को जाने बिना किसी भी एक द्रव्य को समग्रता से नहीं जाना जा सकता। एक द्रव्य के शेष द्रव्यों से होने वाले संबंध और उसके नियम जान लिये जाते हैं तो सभी द्रव्य जान लिये जाते हैं। अनिश्चयवाद की घोषणा ____ कण-भौतिकी (पार्टिकल फिजिक्स) के क्षेत्र में हाईजनबर्ग ने अनिश्चयवाद का सिद्धान्त स्थापित किया—'एक प्रकार के कण एक ही प्रकार का व्यवहार नहीं करते । उनका व्यवहार बदलता रहता है। चेतना का व्यवहार बदलता ही है, किन्तु पदार्थ का व्यवहार भी बदलता है।' यह संभावनावाद या अनिश्चयवाद की महत्त्वपूर्ण घोषणा
अनेकान्त का सिद्धान्त है-अचेतन और चेतन दोनों प्रकार के द्रव्यों में अनन्तअनन्त पर्याय होते हैं । वे दो प्रकार के हैं स्वाभाविक और सांयोगिक । स्वाभाविक पर्याय किसी निमित्त की अपेक्षा रखे बिना प्रतिक्षण उत्पन्न होते हैं और विलीन होते हैं । जैसे तरंग और जल को पृथक् नहीं किया जा सकता, वैसे ही द्रव्य और स्वाभाविक पर्यायों को पृथक् नहीं किया जा सकता। संयोग से होने वाले पर्याय कदाचित्क होते हैं। उनका प्रवाह नहीं होता। वे संयोग के मिलने पर उत्पन्न होते हैं और संयोग के
१.(क) आयारो, ३/७४।
जे एगं जाणइ से सव्वं जाणइ।
जे सर्व जाणइ से एगं जाणइ॥ (ख) स्यादवादमंजरी,
एको भावः सर्वथा येन दृष्टाः, सर्वेभावा सर्वथा तेन दृष्टाः । सर्वे भावाः सर्वथा येन दृष्टः, एको भावः सर्वथा तेन दृष्टा॥
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