________________
विचार की आधारत्ति : नयवाद / ६५ नहीं, घट का कुट में संक्रमण अवस्तु है । 'घट' वह वस्तु है, जो माथे पर रखा जाए। कहीं बड़ा, कहीं चौड़ा और कहीं संकरा, इस प्रकार जो कुटिल आकार वाला है, वह 'क्रुट' है । माथे पर रखी जाने योग्य अवस्था और कुटिल आकृति की अवस्था एक नहीं है । इसलिए दोनों को एक शब्द का अर्थ मानना भूल है । अर्थ की अवस्था के अनुरूप शब्द प्रयोग और शब्द प्रयोग के अनुरूप अर्थ का बोध हो, तभी सही व्यवस्था हो सकती है । अर्थ की शब्द के प्रति और शब्द की अर्थ के प्रति नियामकता न होने पर वस्तु-सांकर्य हो जाएगा। फिर कपड़े का अर्थ घड़ा और घड़े का अर्थ कपड़ा न समझने के लिए नियम क्या होगा? कपड़े का अर्थ जैसे तंतु समुदाय है, वैसे ही मृण्मय पात्र भी हो जाए और सब कुछ हो जाए तो शब्दानुसारी प्रवृत्ति-निवृत्ति का लोप हो जाता है, इसलिए शब्दों को अपने वाच्य के प्रति सच्चा होना चाहिए। घट अपने अर्थ के प्रति सच्चा रह सकता है, पट या कुट के अर्थ के प्रति नहीं। यह नियामकता या सच्चाई ही इसकी मौलिकता है। एवंभूत
समभिरूढ़ में फिर भी स्थितिपालकता है। वह अतीत और भविष्य की क्रिया को भी शब्द-प्रयोग का निमित्त मानता है। यह नय अतीत और भविष्य की क्रिया से शब्द और अर्थ के प्रति नियम को स्वीकार नहीं करता। सिर पर रखा जाएगा रखा गया इसलिए वह घट है। यह नियम क्रियाशून्य है । घट वह है जो माथे पर रखा हुआ है । इसके अनुसार शब्द अर्थ की वर्तमान चेष्टा का प्रतिबिम्ब होना चाहिए। यह शब्द को अर्थ का और अर्थ को शब्द का नियामक मानता है। घट शब्द का वाच्य अर्थ वही है, जो पानी लाने के लिए मस्तक पर रखा हुआ है वर्तमान प्रवृत्तियुक्त है। घट शब्द भी वही है, जो घट-क्रियायुक्त अर्थ का प्रतिपादन करे ।
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org