________________
स्याबाद और जगत् / ५५
गुणात्मक जगत्
गुण
सामान्य ००००००
+
०००००० ००००००
विशेष ++++++ जीव +++++ पुद्गल
धर्म ++ अधर्म + + + आकाश
+ +
+ +
०००००० ००००००
+ +
अद्वैत या द्रव्यात्मक जगत् हमारे लिए प्रत्यक्ष नहीं है, परिणाम हमारे प्रत्यक्ष होते हैं। हमारा अधिकांश समय परिणामात्मक जगत् में बीतता है। इस जगत् की रचना बहुत ऋजु है। इसमें सब कुछ वर्तमान है । भूत और भाली के लिए कोई स्थान नहीं है। भूत बीत जाता है, भावी अनागत होता है, इसलिए वे कार्यकर नहीं होते। वर्तमान अर्थ-क्रिया सम्पन्न है, इसलिए वह वस्तु-स्थिति है । यह परिवर्तन का सिद्धान्त है। यह अन्वय की व्याख्या नहीं दे सकता। इस पद्धति को 'ऋजुसूत्र-नय' कहा जाता
परिणामात्मक जगत्
पूर्ववर्ती तीन दृष्टिकोण द्रव्याश्रित परिणामों की व्याख्या देते हैं और प्रस्तुत दृष्टिकोण केवल परिणामों की व्याख्या देता है। द्रव्य दृष्टिगामी होता है और पर्याय दृष्टिद्वैतगामी । द्रव्य अद्वैत-अविच्छिन्न होता है और पर्याय विच्छिन्न होता है। विच्छेद के हेतु तीन गुण हैं—वस्तु, देश और काल । अविच्छेद और विच्छेदनय की अपेक्षा से तीन-तीन रूप बनते हैं
वस्तुकृत अविच्छिन्न
वस्तुकृत विच्छिन्न
एक
अनेक
देशकृत अविच्छिन्न
देशकृत विच्छिन्न
___Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org