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________________ स्यावाद और जगत् । ४७ विश्व-संचालन : स्वाभाविक परिवर्तन सूक्ष्म परिवर्तन (अगुरु-लघु पर्याय) प्रतिक्षण होता है और सब द्रव्यों में होता है। स्थूल परिवर्तन (व्यंजन पर्याय) जीव और पुद्गल, इन दो ही द्रव्यों में होता है। वह पर-निमित्त से भी होता है और सहज भी होता है। असंख्यकाल के पश्चात् व्यंजन-पर्याय का निश्चित परिवर्तन होता है। सोने का परमाणु असंख्यकाल के पश्चात् सोने का नहीं रहता, वह दूसरे द्रव्य का प्रायोग्य बन जाता है। यह परिवर्तन ही विश्व-संचालन का बहुत बड़ा रहस्य है । सृष्टि के आरम्भ, विनाश और संचालन की व्यवस्था इसी स्वाभाविक परिवर्तन के सिद्धान्त पर आधारित है। अगुरु-लघु पर्याय (या अस्तित्व की क्षमता) की दृष्टि से विश्व अनादि-अनन्त है । व्यंजन-पर्याय की दृष्टि से विश्व सादि-सान्त है। स्वाभाविक परिवर्तन की दृष्टि से विश्व स्वयं संचालित है। प्रत्येक द्रव्य की संचालन-व्यवस्था उसके सहज स्वरूप में सन्निहित है। वैभाविक परिवर्तन की दृष्टि से विश्व जीव और पुद्गल के संयोग-वियोग से प्रजनित विविध परिणतियों द्वारा संचालित है। सापेक्षवाद : विश्व की व्याख्या विश्व की परिवर्तन और स्थायित्व की व्याख्या सापेक्षवाद इस प्रकार करता है। वैज्ञानिक निष्कर्षों के, आन्तरिक और बाह्य सीमाओं पर जो भी सूत्र प्राप्त हुए हैं, वे यह व्यक्त करते हैं कि ब्रह्माण्ड का निर्माण किसी निश्चितकाल में हुआ होगा। जिस अभिन्न हिसाब से यूरेनियम अपनी परमाणु-केन्द्रीय शक्ति को बिखेरता है (और चूंकि उसके निर्माण की किसी प्राकृतिक प्रणाली का पता नहीं चलता), उससे प्रकट होता है कि इस पृथ्वी पर जितना भी यूरेनियम है, सबका निर्माण एक निश्चित काल में हुआ होगा। भू-विज्ञानवेत्ताओं की गणना के अनुसार यह काल करीब बीस अरब वर्ष पूर्व रहा होगा। तारों के आन्तरिक भागों में दुर्धर्ष रूप से चलने वाली तापकेन्द्रीय प्रणालियां जिस तीव्रता से पदार्थ को प्रकाश-किरण में परिणत करती हैं, उससे अन्तरिक्ष-विज्ञानवेत्ता नक्षत्रीय जीवन का विश्वासपूर्वक हिसाब लगाने में समर्थ हैं। उनके हिसाब से अधिकांश दृश्य तारों की औसत आयु बीस अरब वर्ष है । इस प्रकार भू-विज्ञानवेत्ताओं और अन्तरिक्ष-विज्ञानवेत्ताओं के हिसाब ब्रह्माण्ड-वेत्ताओं के १. भगवती-सूत्र, ८/३५१ २. डॉ. आइन्स्टीन और ब्रह्माण्ड पृ० ११३-१४ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002589
Book TitleJain Darshan aur Anekanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2003
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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