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________________ ४४ / जैन दर्शन और अनेकान्त सम्बन्ध तार द्वारा बिजली की बैटरी के साथ कर दिया जाए तो कुछ ही समय में पानी गायब हो जाएगा । साथ ही यदि उन प्लेटिनम की पत्तियों पर रखे गए ट्यूबों पर ध्यान दिया जाएगा तो दोनों में एक-एक तरह की गैस मिलेगी, जो ऑक्सीजन और हाइड्रोजन होगी। आधुनिक वैज्ञानिक शोधों से यह प्रमाणित हुआ है कि पुद्गल शक्ति में और शक्ति पुद्गल में परिवर्तित हो सकती है ।' सापेक्षवाद के अनुसार पुद्गल के स्थायित्व के नियम व शक्ति के स्थायित्व का नियम कर देना चाहिए । स्थायित्व और परिवर्तन सापेक्ष है स्याद्वाद के अनुसार सत् का कभी नाश नहीं होता और असत् का कभी उत्पाद नहीं होता। ऐसी कोई स्थिति नहीं होती, जिसके साथ उत्पाद और विनाश की अविच्छिन्न धारा न हो और ऐसे उत्पाद - विनाश नहीं होते, जिनकी पृष्ठभूमि में स्थिति का हाथ न हो । सब द्रव्य उभय-स्वभावी हैं। उनके स्वभाव की व्याख्या एक ही नियम से नहीं हो सकती । असत् का उत्पाद नहीं होता और सत् का विनाश नहीं होता। इस द्रव्यनयात्मक सिद्धान्त के द्वारा द्रव्यों (धौव्यांशों या मूलभूत तत्त्वों) की ही व्याख्या हो सकती है। इसके द्वारा रूपान्तरों (पर्यायों) की व्याख्या नहीं हो सकती। उनकी व्याख्या— असत् की उत्पत्ति और सत् का विनाश होता है— इस पर्यायनयात्मक सिद्धान्त के द्वारा ही की जा सकती है। इन दोनों को एक भाषा में परिणामी - नित्यवाद या नित्यानित्यवाद कहा जा सकता है। इसमें स्थायित्व और परिवर्तन के सापेक्ष रूप की व्याख्या है । इस जगत् में ऐसा कोई भी द्रव्य नहीं है, जो सर्वथा स्थायी ही है और ऐसा भी कोई द्रव्य नहीं है, जो सर्वथा परिवर्तनशील ही है। मोमबत्ती, जो परिवर्तनशील है, वह भी स्थायी है और जीव, जो स्थायी माना जाता है वह भी परिवर्तनशील है । स्थायित्व और परिवर्तनशीलता की दृष्टि से जीव और मोमबत्ती में कोई अन्तर नहीं है । ' १. A Text Book of Inoraganic Chemistry by G. S. Neuth, p. 237, २. General Chemistry by Linus Pauling, p. 4-5 ३. General and Inorganic Chemistry by P. J. Durrant, p. 18 ४. 'भावस्स णत्थि णासो, णत्थि अभावस्स उप्पादो :- पंचास्तिकाय, १५ 5. अन्ययोगव्यवच्छेदिका, श्लोक ५ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002589
Book TitleJain Darshan aur Anekanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2003
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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