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________________ स्याद्वाद और जगत् / ४३ हो गयी।' कपूर हमारे हाथ में रहते-रहते उड़ जाता है, तब हम कहते हैं—'वह नष्ट हो गया।' यह वही है-यह नित्यता का सिद्धान्त है। हरियाली उत्पन्न हो गयी–यह उत्पत्ति का सिद्धान्त है । वह नष्ट हो गया-यह विनाश का सिद्धान्त है। द्रव्य की उत्पत्ति और विनाश : विभिन्न दृष्टिकोण द्रव्य की उत्पत्ति के विषय में परिणामवाद, आरम्भवाद, समूहवाद आदि अनेक अभिमत हैं । उसके विनाश के विषय में भी अनेक विचार हैं-रूपान्तरवाद, विच्छेदवाद आदि । परिणामवादी सांख्यदर्शन कार्य को अपने कारण में सत् मानता है । सत्कार्यवाद के अनुसार जो असत् है, वह उत्पन्न नहीं होता और जो सत् है वह नष्ट नहीं होता, केवल रूपान्तर होता है। उत्पत्ति का अर्थ है सत् की अभिव्यक्ति और विनाश का अर्थ है असत् की अभिव्यक्ति । आरम्भवादी न्याय-वैशेषिक कार्य को अपने कारण में सत् नहीं मानते। असत्-कार्यवाद के अनुसार असत् उत्पन्न होता है और सत् विनष्ट होता है। इसीलिए नैयायिक ईश्वर को कूटस्थ नित्य और प्रदीप को सर्वथा अनित्य मानते हैं । बौद्ध दार्शनिक स्थूल द्रव्य को सूक्ष्म अवयवों का समूह मानते हैं तथा द्रव्य-मात्र को क्षण-विनश्वर मानते हैं । उनके अभिमत में स्थिति कुछ भी नहीं है। जो एकान्त नित्यवादी हैं, वे भी परिवर्तन की उपेक्षा नहीं कर सकते, जो हमारे प्रत्यक्ष है । जो एकान्त अनित्यवादी हैं, वे भी स्थिति की उपेक्षा नहीं करते, जो हमारे प्रत्यक्ष है। इसीलिए नैयायिकों ने दृश्य वस्तुओं को अनित्य मानकर उनके परिवर्तन की व्याख्या की और बौद्धों ने सन्तति मानकर उनके प्रवाह की व्याख्या की। रूपान्तरण का सिद्धान्त ____ वैज्ञानिक जगत् में रूपान्तरण का सिद्धान्त सर्व-सम्मत है । उदाहरणस्वरूप, एक मोमबत्ती को ले लीजिए। जलाए जाने पर कुछ ही समय में उसका सम्पूर्ण नाश हो जाएगा। प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध किया जा सकता है कि मोमबत्ती का नाश होने से अन्य वस्तुओं की उत्पत्ति हुई।' इसी तरह जल को एक प्याले में रखा जाए और प्याले में दो छिद्र कर तथा उनमें कार्क लगाकर दो प्लेटिनम की पत्तियां जल में खड़ी कर दी जाएं और प्रत्येक पत्ती के ऊपर एक कांच का टूयूब लगा दिया जाए तथा प्लेटिनम की पत्तियों का 1. A Text Book of Inoraganic Chemistry by J. R. Partingtion, p. 15. ____Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002589
Book TitleJain Darshan aur Anekanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2003
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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