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स्यावाद और जगत् / ४१ नास्ति का निरूपण सापेक्ष दृष्टि से ही हो सकता है:
स्यात्-अस्ति एव-किसी दृष्टि से है। स्यात्-नास्ति एव-किसी दृष्टि से नहीं है।
स्वर्ण के परमाणु स्वर्ण के साथ अस्तित्व-रूप में सम्बद्ध हैं और जल के परमाणु उसके साथ नास्तित्व रूप में सम्बद्ध हैं ।
०००००
०००० ००००० - ००००० - ०००
जल है जल नहीं है
नहीं है] स्वर्ण है
०००० ०००००
००००० ००००० - नहीं है । ००००० स्वर्ण है ०००००
स्वर्ण नहीं है।
०००००
अस्तित्व-नास्तित्व: दोनों जलगत है
जल के परमाणु जल के साथ अस्तित्व रूप में सम्बद्ध हैं और स्वर्ण के परमाणु उसके साथ नास्तित्व-रूप में सम्बद्ध हैं।
स्वर्ण के परमाणु जैसे स्वर्ण के साथ अस्तित्व रूप में सम्बद्ध हैं, वैसे ही यदि जल के साथ भी अस्तित्व-रूप में सम्बद्ध हों तो स्वर्ण और जल दो नहीं हो सकते।
स्वर्ण के परमाणु जैसे जल के साथ नास्तित्व रूप से सम्बद्ध हैं, वैसे ही यदि स्वर्ण के साथ भी नास्तित्व रूप में सम्बद्ध हों तो स्वर्ण होता ही नहीं।
जल के परमाणु स्वर्ण के साथ यदि नास्तित्व रूप में सम्बद्ध न हों तो जल और स्वर्ण-दो नहीं हो सकते। इस प्रकार अस्ति और नास्ति-दोनों पर्याय समन्वित या सापेक्ष होकर ही द्रव्य की स्वतन्त्र सत्ता का निर्माण करते हैं । इस सापेक्षता को समझकर ही हम भेद में अभेद की स्थापना कर सकते हैं। .
अस्तित्व और नास्तित्व के नियम, स्व और पर शब्द का प्रयोग फिर विमर्श मांगता है । जल अपने घटक द्रव्यों की अपेक्षा से है तथा स्वर्ण के घटक द्रव्यों की
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